आम तौर पर पढ़ी-लिखी महिलाएं खेतीबारी में कम ही रुचि रखती हैं. उनका रुझान दूसरे कार्यो की ओर अधिक होता है. बबीता कश्यप इस मामले में अपवाद हैं. उन्होंने खेती की ओर रुख किया और गांव-गांव में महिलाओं को इससे जोड़ने का अभियान छेड़ा. बबीता ने रासायनिक खेती के बजाय जैविक खेती को अपनाया. 2005 में रामगढ़ से एकाउंट ऑनर्स की पढ़ाई पूरी करने वाली बबीता हमेशा कुछ नया करने...
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गुजरात मॉडल की असलियत- कृष्ण स्वरुप आनंदी
जनसत्ता 19 फरवरी, 2014 : गुजरात का विकास चर्चा का विषय बना दिया गया है। ऐसा दावा किया जा रहा है कि अन्य राज्यों के लिए ही नहीं, बल्कि समूचे देश के लिए भी एक बेहतरीन अनुकरणीय मॉडल गुजरात ने प्रस्तुत किया है। उस मॉडल को देशव्यापी बनाने का सपना जोर-शोर से लोगों को दिखाया जा रहा है। विकास, सुशासन, समृद्धि, रोजगार सृजन जैसे शब्द तेजी से हवा में उछाले...
More »जैविक खेती के प्रति बढ़ा रुझान अब सर्टिफिकेशन का इंतजार
रांची से तकरीबन 40 किमी दूर कुच्चू पंचायत के डिमरा गांव के सोहराय बेदिया इस बार 10 एकड़ जमीन पर सेम की खेती कर रहे हैं. उनके खेतों में सेम की लताएं फलियों से भरी हैं. यह अपने आप में अजीब नजारा है कि जब उनके आसपास के तमाम खेत परती पड़े हैं, पानी के अभाव में कोई किसान खेती करने के लिए तैयार नहीं है. उनके खेत लहलहा रहे हैं. वे...
More »विषमता का विकास- सुषमा वर्मा
जनसत्ता 17 फरवरी, 2014 : विश्व बैंक की प्रबंध निदेशक क्रिस्टीना लेगार्ड ने हाल ही में यह रहस्योद्घाटन किया कि भारत के अरबपतियों की दौलत पिछले पंद्रह बरस में बढ़ कर बारह गुना हो गई है। क्रिस्टीना के अनुसार, इन मुट्ठी भर अमीरों के पास इतना पैसा है जिससे पूरे देश की गरीबी को एक नहीं, दो बार मिटाया जा सकता है। लेगार्ड के इस बयान से पुष्टि होती है...
More »डूबते को तिनके का सहारा..
कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा होता है। यह कहावत “निजो गृह-निजो भूमि” कार्यक्रम के हितग्राही पश्चिम बंगाल के भूमिहीन परिवारों पर सटीक बैठती है। इंटरनेशनल फूड एंड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने इंडिया स्टेट हंगर इंडेक्स(2008) में पश्चिम बंगाल में भुखमरी की दशा को खतरनाक करार दिया था। समस्या से निपटने के दूरगामी उपाय के रुप में पश्चिम बंगाल की सरकार ने राज्य के भूमिहीन परिवारों को आवास और खेती-बाड़ी...
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