आजादी के बाद भारत में गरीबी रेखा तय करने की दिशा में उठाये गये विभिन्न कदमों की सूची में पिछले कुछ वर्षो के दौरान संचालित सामाजिक, आर्थिक व जाति सर्वेक्षण का महत्वपूर्ण स्थान है. इसमें पहली बार किसी परिवार की सामाजिक पहचान को तरजीह दी गयी है. देश में लंबे अरसे से ऐसी मान्यता रही है कि गरीबी की मार कुछ सामाजिक श्रेणियों को ज्यादा ङोलनी पड़ती है, जिनमें से...
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मैला ढोने वाले- आज भी 18.06 लाख भारतीय इस काम के साथ जीने को हैं मजबूर
देश में सिर पर मैला ढोने जैसा अमानवीय चलन आज भी पूरी तरह रुक नहीं पाया है। शुक्रवार को जारी सामाजिक, आर्थिक, जाति आधारित जनगणना (एसईसीसी) 2011 के मुताबिक, ग्रामीण भारत में औसतन 0.10 फीसदी लोग सिर पर मैला ढोते हैं। यानी करीब 18.06 लाख लोग यह काम कर रहे हैं। आजादी मिलने के बाद से ही कई सरकारों ने इसे खत्म करने को कानून बनाए लेकिन यह चलन जारी...
More »न्यूनतम सरकार अधिकतम शोषण- के सी त्यागी
श्रमिकों के शोषण का लंबा इतिहास रहा है। इसके विरुद्ध श्रमिकों ने समय-समय पर आवाज उठाई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर श्रम कानून बने। मजदूर संगठित हुए, उन्हें अधिकार मिले, स्वतंत्रता मिली, सामाजिक सुरक्षा का दायरा बढ़ा। इसका असर हमने भारत में भी देखा। लेकिन नई औद्योगिक नीति और उदारीकरण का दौर परवान चढ़ने के साथ ही श्रमिक फिर शोषण का शिकार हुए। उनका सामाजिक दायरा घटा, अधिकार सिकुड़ते चले गए। इसी...
More »गर्म हवाओं के खतरे से अब तो चेत जाएं - मिहिर आर. भट्ट
दुनिया के इतिहास में यह पांचवीं सबसे जानलेवा लू है, जिसका सामना हम इन दिनों कर रहे हैं। 2200 से ज्यादा लोगों की अब तक यह जान ले चुकी है। क्या हमें और मौतों का इंतजार है, जिसके बाद ही हम लू के खतरे का सामना करने के लिए कोई राष्ट्रीय नीति बनाएंगे? ध्यान रहे कि पिछले कुछ दिनों में गर्म हवा के थपेड़ों से जितने लोगों की मौतें हुई...
More »कोरबा : 'रोशनी' तिल-तिल समा रही अंधेरे के आगोश में
कोरबा (निप्र)। गर्भ में पल रही बेटी को बचाने देश भर में भले ही अभियान चलाया जा रहा हो, पर इस दुनिया में आ चुकी 5 साल की बेटी को बचाने कोई सुध नहीं ले रहा। रोजी मजदूरी वाले कृष्णा यादव ने बड़े प्यार से अपनी बेटी का नाम रोशनी रखा था, पर उजाला होने से पहले ही वह अंधेरे की आगोश में समाने लगी है। उसके दोनों किडनी एक...
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