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प्रवासियों के लिए उठाए गए कदम को सुप्रीम कोर्ट को बताने में विफल रहे 28 राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश

-द प्रिंट, 28 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 45 दिन पहले शीर्ष अदालत द्वारा निर्देशित तीन मौजूदा सामाजिक सुरक्षा कानूनों के तहत प्रवासी श्रमिकों के लिए उठाए गए कदमों के विवरण सर्वोच्च न्यायालय को देने में विफल रहे हैं. यह 31 जुलाई को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा पर दर्ज स्वतः संज्ञान मामले पर दायर एक निहितार्थ आवेदन की सुनवाई के दौरान सामने आया था. एनएचआरसी ने यह इंगित...

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आंकड़े बताते हैं, लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के लिए आयुष्मान भारत योजना ‘वरदान’ साबित नहींं हुई

-द प्रिंट, प्रधानमंत्री की जन आरोग्य योजना (पीएम-जय), प्रधानमंत्री मोदी की स्वास्थ्य बीमा योजना आयुष्मान भारत के अंतर्गत आनेवाली की तीसरी फ्लैगशिप योजना है. जिसे यह बताया जा रहा है कि यह कोविड-19 के लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के लिए वरदान साबित हुई है. हालांकि, राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण, इस योजना का प्रबंधन करने वाली एजेंसी के आंकड़ों से पता चलता है कि इस योजना का प्रवासी मजदूर समूह को सरकार के...

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दिल्ली में “रोजगार बाजार”, प्रवासी मजदूरों से लौटने की अपील

-डाउन टू अर्थ, कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन के चलते बेरोजगार हुए युवाओं और कर्मचारियों की कमी झेल रहे उद्यमियों, दुकानदारों व कारोबारियों आदि को एक-दूसरे से मिलाने के लिए दिल्ली सरकार ने वेब पोर्टल jobs.delhi.gov.in लॉन्च किया है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि यह वेब पोर्टल एक तरह से रोजगार बाजार है, जहां नौकरी लेने और नौकरी देने वालों का मिलाप होगा और लोगों को नौकरियां मिलेंगी। वेब पोर्टल...

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बेरोजगारी का संक्रमण

-इंडिया टूडे हिंदी, विक्रम अपना मास्क संभाल ही रहा था कि वेताल कूद कर पीठ पर लद गया और बोला राजा बाबू ज्ञान किस को कहते हैं? विक्रम ने श्मशान की तरफ बढ़ते हुए कहा, युधिष्ठिर ने यक्ष को बताया था कि यथार्थ का बोध ही ज्ञान है. वेताल उछल कर बोला, तो फिर बताओ कि लॉकडाउन के बाद भारत में बेकारी का सच क्या है? विक्रम बोला, प्रेतराज, लॉकडाउन ने हमारी...

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तीन साल से तीन महीने की मजदूरी के लिए भटक रहे हरियाणा के 145 मनरेगा मजदूरों को इंसाफ कौन दिलाएगा?

-गांव कनेक्शन,  "सरपंच के कहने पर तीन महीने तक मनरेगा के तहत दिहाड़ी की, लेकिन एक भी फूटी कौड़ी नहीं मिली। मिली तो सरपंच से मारने-पिटने की धमकी और गालियां। मजदूरों को तो इंसान समझते ही नहीं। अपनी मजूरी मांगते हैं तो डराकर भगा देते हैं। हमारे पैसे जो सरकार ने भेजे थे उन्हें खुद ही जीम (डकारना) गए। गरीब आदमी को तो दिहाड़ी के नाम पर बस गालियां ही मिली"...

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