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काहे रे नदिया तू बौरानी!-- अनिल रघुराज

पानी गले तक आ जाये, तो औरों का भरोसा छोड़ कर खुद ही सोचना और खोजना पड़ता है कि बचने का क्या रास्ता है. दो साल के सूखे के बाद सामान्य माॅनसून ने पूरब से लेकर उत्तर भारत के तमाम इलाकों में यही हालत कर दी है. शहरों, कस्बों व गांवों में लोग घरों से निकल कर सड़कों पर आ गये हैं. नदियां बावली हो गयी हैं. कई जगह तो...

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बाढ़ अब हर साल का किस्सा है-- दिनेश मिश्र

हाल के वर्षों तक बाढ़ को ग्रामीण समस्या के रूप में ही देखा जाता था और हमेशा बाढ़ से ग्रस्त रहने वाले इलाकों के लोगों, जो मुख्यत: किसान होते थे, की मान्यता थी कि बाढ़ आती है और चली जाती है। ऐसा विरले ही होता कि कभी ढाई दिन से ज्यादा टिकी हो। लेकिन हमारे बाढ़-नियंत्रण के प्रयासों ने अब गांवों की कौन कहे, शहरी क्षेत्रों को भी अपने में...

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सांसद बैस के आदर्श ग्राम गिरौद के लोग पी रहे श्मशान का पानी

रायपुर, भोलाराम सिन्हा। पूर्व केंद्रीय मंत्री व रायपुर लोकसभा क्षेत्र से सात बार के सांसद रमेश बैस के गोद लिए ग्राम गिरौद के लोग श्मशानघाट का पानी पीने को मजबूर हैं। पाइप लाइन बिछाने के नाम पर गलियों को खोद दिया गया है। इसके बावजूद लोगों के घर तक पीने का साफ पानी नहीं पहुंचा है। खुदी गलियां कीचड़ से भरी हैं। बच्चों के खेलने के लिए गांव में मैदान भी...

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दो मोर्चों पर सबसे ज्यादा नाकाम रहे नरेंद्र मोदी-- तवलीन सिंह

रियो में फिर वही हुआ, जो अक्सर होता है भारतवर्ष के साथ ओलंपिक खेलों में। यानी छोटे-छोटे देश हमारे विशाल देश से ज्यादा पदक हासिल कर जाते हैं। इस बार दो महिलाओं ने लाज बचाई, वरना शायद खाली हाथ लौट कर आते हमारे खिलाड़ी। जैसा अक्सर होता है, जब भारतवासी दुनिया के मुकाबलों में नाकाम होते हैं, विशेषज्ञ निकल कर आए अपने बिलों से विश्लेषण करने। सो, इस बार हमको...

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लुप्त होती तटीय सुरक्षा पंक्ति--- रमेश कुमार दुबे

इस साल अच्छी मानसूनी बारिश से जहां किसानों के चेहरे खिल उठे हैं वहीं देश के कई हिस्से बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं। इस बाढ़ की वजह अच्छी बारिश उतनी नहीं है जितनी कि विकास की अंधी दौड़ में पानी के कुदरती निकासी तंत्र को भुला दिया जाना। शहरों का विकास नदियों के बाढ़ क्षेत्रों, तालाबों व समीपवर्ती कृषि भूमि की कीमत पर हो रहा है। शहरों के...

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