बारह वर्षों के झारखंड में आज अगर हूल की प्रासंगिकता समझनी हो तो बुधनी को जानना जरूरी है। हालांकि सांस्कृतिक अतिक्रमण और हमले से गुजर रहे आज के झारखंड में अब ‘बुधनी’ जैसे ठेठ आदिवासी नाम नहीं मिलते हैं फिर भी रजनी, रोजालिया, रजिया जैसे नामों वाली आदिवासी स्त्रियां रोज ‘बुधनी’ बनने के लिए अभिशप्त हैं। कौन है यह बुधनी और ‘हूल’ के संदर्भ में उसकी चर्चा क्यों जरूरी है?...
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एक बच्चे की कहानी, जो झकझोर देती है अंतर्राष्ट्रीय जर्नलिस्ट की आत्मा!
मुंबई. गरीबी पर 2005 की वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की कुल आबादी का 47.6% हिस्सा गरीबी रेखा के अंतर्राष्ट्रीय मानक से नीचे का जीवन जीने को मजबूर है. इसी तरह 2010 की UNDP रिपोर्ट बताती है कि देश की 37.2% आबादी गरीबी रेखा के राष्ट्रीय स्तर से नीचे का जीवन गुजर करती है. इस स्थित को देश के लगभग 6 करोड़ उन नौनिहालों को भी झेलना पड़ता है जिन पर...
More »सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम बाल-कुपोषण मिटाने के लिए जरुरी - सेव द चिल्डेन की नई रिपोर्ट
एक ऐसे समय में जब अर्थजगत में बुद्धिमानी का पर्याय यह बन चला है कि अर्थसत्ता के खेल के लिए मैदान खुला छोड़ दिया जाय और सामाजिक-क्षेत्र पर होने वाले खर्चों में कटौती की जाय, एक रिपोर्ट का कहना है कि भुखमरी और खासतौर से बाल-कुपोषण मिटाने की दिशा में प्रयास करना अपने आप में बुद्धिमानी का काम है। रिपोर्ट में यूपीए सरकार की प्राथमिकताओं में शुमार किए जाने वाले...
More »पैसा और अनैतिकता- एम जे अकबर
शीशे की एक दीवार को तोड़ने के लिए कितने गुस्से की दरकार होती है? पश्चिमी लोकतंत्र में शीशे की दीवार महिला अधिकारों के संघर्ष के दौरान पक्षपात के प्रतीक में तब्दील हो गयी. महिलाएं 1970 तक एक बने बनाए ढर्रे से बाहर निकल मुख्यधारा में शामिल तो जरूर हुईं, लेकिन वहां से आगे बढ़ने का रास्ता नहीं खुलता था. यह अदृश्य दीवार उन्हें बोर्ड रूम में दाखिल होने से रोकती...
More »एक मीडिया मुगल का पतन : केविन रैफर्टी
रूपर्ट मर्डोक के एक अग्रणी जीवनीकार ने कहा कि उनकी बेटी एलिजाबेथ ने एक पुस्तक के विमोचन के अवसर पर कहा कि जेम्स और ब्रुक्स ने कंपनी का बेड़ा गर्क कर दिया है। सही और गलत के विवेक के बिना संचालित हो रहे अखबारों की जवाबदेही से बचना रूपर्ट के साथ ही जेम्स के लिए भी मुश्किल साबित हो सकता है। रूपर्ट मर्डोक ने निश्चित ही ब्रिटिश पत्रकारिता और वैश्विक मीडिया...
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