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रोजगार और सामाजिक सुरक्षा-- अनुज लुगुन

मई दिवस का सप्ताह श्रमिकों के संघर्ष के इतिहास, उनके अधिकार और भविष्य में उनकी स्थिति के विश्लेषण, बहस और नारेबाजी का सप्ताह बन जाता है. ‘दुनिया के मजदूरों एक हो' के बुलंद नारों के साथ यह धीरे-धीरे अगले मई दिवस तक के लिए गुम हो जाता है. श्रम और उसके मूल्य का संबंध मानव समाज के इतिहास के साथ जुड़ा हुआ है. विभिन्न समय में यह अलग-अलग रूपों...

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श्रमिक वर्ग का सर्वहारा समीकरण-- हरजिंदर

बात लगभग तीन साल पहले की है। न्यूयॉर्क में अमेरिका के लेफ्ट फोरम यानी वाम मंच ने तीन दिन का एक सम्मेलन किया। इसमें दुनिया भर के कई कार्यकर्ता जमा हुए। तमाम विश्वविद्यालयों के कई नामी-गिरामी प्रोफेसर वहां आए। अपनी सोच से दुनिया की एकमात्र वास्तविक व्याख्या का दावा करने वाले ‘फ्री थिंकर' भी वहां भारी संख्या में थे। गायक, कलाकार, रंगमंच के निर्देशक, अभिनेता, कुल मिलाकर बौद्धिक जगत की...

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शिक्षा के साथ कौशल भी जरूरी-- शिवम भारद्वाज

वैश्वीकरण के दौर में शिक्षा को व्यक्तित्व और क्षमता के विकास के नजरिए से देखे जाने की जरूरत है, न कि केवल नौकरी के नजरिए से। अगर क्षमता है, योग्यता है तो अवसरों की कमी नहीं होगी, जरूरत होगी केवल सतत प्रयासों की। वर्तमान में शिक्षा को केवल नौकरी से जोड़ कर देखा जाने लगा है। पाठ्यक्रम में दाखिला और फिर उसके पूरा हो जाने पर अंकतालिका और उपाधि और...

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नए दौर में हो नई रोजगार नीति - डॉ भरत झुनझुनवाला

श्रम संसार पहले ही रोबोट से त्रस्त था। रोबोट द्वारा अधिकाधिक कार्य जैसे असेंबली लाइन पर कारों का निर्माण किया ही जा रहा था। अब कंप्यूटर द्वारा बौद्धिक कार्यों को भी किया जाने लगा है। इसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई कहते हैं। जैसे यदि आपको कोर्ट में कोई मामला दायर करना हो तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रोग्राम से आप जान सकते हैं कि उसी संबंध में कौन से पूर्व निर्णय दिए...

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शिक्षक को मजबूर बनाती व्यवस्था-- मनीषा सिंह

हमारे समाज में शिक्षक काफी सम्मान का पात्र समझा जाता रहा है। देश की भावी पीढ़ी या भविष्य कहलाने वाले बच्चों और अंतत: समाज को शिक्षा व सही दिशा-निर्देश देने की शिक्षक की भूमिका में तो अब भी कोई बदलाव नहीं हुआ है, पर आधुनिक व्यवस्था में वह समाज के सबसे निरीह प्राणी के रूप में देखा जाने लगा है। इसका कारण सिर्फ यह नहीं है कि शिक्षक के रूप...

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