-डाउन टू अर्थ, महासागर मानवजनित जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न अतिरिक्त गर्मी को अवशोषित करते हैं। इस प्रक्रिया के चलते दुनिया भर में महासागरों का तापमान लोगों और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित करता है साथ ही समुद्र के जल स्तर में वृद्धि होती है। यह जानना कि इस सदी के दौरान समुद्र का स्तर कितना बढ़ेगा, यह भविष्य में होने वाले जलवायु परिवर्तन पर हमारी समझ के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन...
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किसानों की फसलों से आय 48 फीसदी से गिर कर 38 फीसदी रह गई -एनएसओ
-रूरल वॉइस, केेंद्र की मोदी सरकार ने 2016 में घोषणा की थी कि साल 2022 तक किसानों की आय को दो गुना कर दिया जाएगा। यह बात खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश की एक रैली में कही थी। लेकिन नेशनल सैंपल सर्वे की सिचुएशन असेसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल हाउसेज एंड लैंड एंड लाइवस्टॉक होल्डिंग्स ऑफ हाउसेज इन रूरल इंडिया (एसएएस ) रिपोर्ट, 2019 के जारी किए गये आंकड़े बताते हैं कि खेती...
More »कर्ज में डूबा ग्रामीण भारत : 50 फीसदी से अधिक कृषि परिवारों पर कर्ज का भार
-डाउन टू अर्थ, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के 77वें दौर के सर्वेक्षण में जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि 2019 में 50 प्रतिशत से अधिक कृषि परिवार कर्ज में थे और प्रत्येक कृषि परिवार पर बकाया ऋण की औसत राशि 74,121 रुपये थी। 10 सितंबर को एनएसओ की ओर से जारी 'ग्रामीण भारत में परिवारों की स्थिति का आकलन और परिवारों की भूमि जोत, 2019' के निष्कर्ष में यह बात कही...
More »क्या 50 लाख साल बाद, जल संकट से होने वाले पलायन से फिर जूझ रही है दुनिया?
-डाउन टू अर्थ, दिल्ली के श्रम बाजारों में पिछले कुछ हफ्तों से भीड़ बढ़ने लगी है। अनौपचारिक कामगारों के ये बाजार आसपास के राज्यों, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के मौसम की स्थिति का पैमाना हैं। मानसून का यह मौसम अनिश्चितताओं से भरा है। दिल्ली के बाजारों में अनौपचारिक कामगारों की संख्या में वृद्धि भविष्य के सूखे का एक निश्चित संकेत है। कृषि के मौसम...
More »कोविड-19 लॉकडाउन: सरकार द्वारा जीडीपी में काफ़ी ज़्यादा वृद्धि का भ्रम फैलाया जा रहा है
-द वायर, विश्व बैंक के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक बसु ने कहा है कि अप्रैल-जून 2021 के दौरान भारत की जीडीपी में 20.1 फीसदी की वृद्धि ‘चौंकाने वाली बुरी खबर’ है, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पूरी प्रचार मशीनरी इसे बड़े आर्थिक सुधार के रूप में दिखा रही है. आखिर क्यों एक ही आंकड़े का एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न मतलब निकाला जा रहा है? बसु ने इसे सरल शब्दों में बताया है. दरअसल अप्रैल-जून...
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