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बाबरी फैसला बीजेपी के लिए सोने की मुर्ग़ी है. मथुरा, काशी से भारत का इस्लामिक इतिहास मिटाने के संकेत

-द प्रिंट, तीन सौ इक्यावन गवाह, 600 दस्तावेज़, बहुत से वीडियो कैसेट्स और अख़बारों की ख़बरें, बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में अभियुक्तों को- जिनमें लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, उमा भारती, राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र न्यास अध्यक्ष नृत्य गोपाल दास और शिव सेना लीडर सतीश प्रधान वग़ैरह शामिल थे- दोषी ठहराने के लिए काफी नहीं थीं. प्रतीकवाद की राजनीति में ऊंची जगह होती है, ख़ासकर भारत में. 28 साल पहले क्या हुआ था,...

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बस्तर में 90 प्रतिशत लोग मानते हैं माओवाद का अंत गोली से नहीं बातचीत से होगा

-द प्रिंट, माओवाद का केंद्र बन चुके बस्तर क्षेत्र के 90 प्रतिशत से अधिक लोगों का कहना है कि यह एक राजनैतिक समस्या है जिसका समाधान भी सियासी गलियारे से ही निकलेगा. लोगों का कहना है कि नक्सली समस्या के अंत के लिए पुलिस, नक्सली और जनता को एक साथ आना पड़ेगा. पिछले डेढ़ महीने के दौरान हिंदी के अलावा स्थानीय गोंडी और हल्बी भाषा में किये गए एक ई जनमत सर्वेक्षण...

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एमनेस्टी इंटरनेशनल: 15 अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने भारत सरकार की कार्रवाई की निंदा की

-द वायर, ह्यूमन राइट्स वाच सहित 15 अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने एक संयुक्त बयान जारी कर एमनेस्टी इंटरनेशनल को भारत में अपना काम बंद करने के लिए मजबूर किए जाने की आलोचना की. लाइव लॉ के अनुसार, बयान में कहा गया, ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने घोषणा की कि वह देश में अपना काम रोक रही है, क्योंकि संगठन के मानवाधिकार कार्यों के लिए बदले की कार्रवाई में भारत सरकार ने उसके बैंक खातों को  को फ्रीज...

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एनडीए से हटने के बाद अकाली दल अध्यक्ष का दावा, “सीएए और 370 पर बीजेपी का किया था विरोध”

-कारवां, केंद्र सरकार द्वारा तीन विवादास्पद कृषि कानून पारित किए जाने के बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से शिरोमणि अकाली दल बाहर हो गई है. अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने 26 सितंबर को घोषणा की कि वह पंजाब और सिख मामलों में बीजेपी द्वारा निरंतर दिखाई जा रही संवेदनहीनता के चलते गठबंधन तोड़ रहे हैं. बादल ने एनडीए के कामकाज के तरीके पर भी सवाल उठाए और क्षेत्रीय साझेदारों को...

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किसानों में आक्रोश को लेकर गांधी ने जो चेतावनी दी थी क्या आज हम उसी का सामना कर रहे हैं?

-सत्याग्रह,  आधुनिक भारत में संगठित किसान आंदोलन के जनकों में से एक प्रोफेसर एनजी रंगा स्वयं एक किसान के बेटे थे. उन्होंने गुंटूर के ग्रामीण विद्यालय से लेकर ऑक्सफर्ड तक में अर्थशास्त्र की पढ़ाई की थी और वे गांधी से बेहद प्रभावित थे. गांधी से मिलते तो सवालों की झड़ी लगा देते थे और कई बार लंबी-लंबी प्रश्नावली पहले से लिखकर उन्हें सौंप देते थे. 1944 में जब गांधी जेल से...

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