एक नजर सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर लगातार ऊंची बनी होने के बावजूद भारत अपनी ग्रामीण जनता की जरुरत के हिसाब से मुठ्ठी भर भी नये रोजगार का सृजन नहीं कर पाया है। नये रोजगारों का सृजन हो रहा है लेकिन यह अर्थव्यवस्था के ऊंचली पादान के सेवा-क्षेत्र मसलन वित्त-जगत, बीमा, सूचना-प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी के दम पर चलने वाले हलकों में हो रहा है ना कि विनिर्माण और आधारभूत ढांचे के...
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शिक्षा
खास बात • साल १९९३-९४ में ग्रामीण इलाकों में पुरुष साक्षरता की दर(राष्ट्रीय स्तर) ६३ फीसदी थी जो साल १९९९-२००० में बढ़कर ६८ फीसदी हो गई।* • साल १९९३-९४ में ग्रामीण इलाकों में महिला साक्षरता की दर(राष्ट्रीय स्तर) ३६ फीसदी थी जो साल १९९९-२००० में बढ़कर ४३ फीसदी हो गई।* • भारत के ग्रामीण अंचल में अनुसूचित जनजाति के तबके के लोगों में साक्षरता दर सबसे कम(४२ फीसदी) पायी गई है। इसके तुरंत बाद अनुसूचित...
More »सूचना का अधिकार
[inside]आरटीआई कानून का इस्तेमाल करने पर मार दिए गये बिहार के निवासियों पर एक रिपोर्ट आई है. जानिये रिपोर्ट की मुख्य बातें[/inside] पूरी रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए कृपया यहाँ क्लिक कीजिये. साल 2010 से लेकर अब तक, बिहार में आरटीआई कानून का इस्तेमाल करने के कारण कुल 20 कार्यकर्ताओं ने अपनी जान गवाई है. लगभग आधे कार्यकर्ताओं की हत्या पिछले 4 साल में हुई हैं. वर्ष 2018 में छह कार्यकर्ताओं की हत्या की...
More »पलायन (माइग्रेशन)
खास बात • किसी प्रांत से उसी प्रांत में और किसी एक प्रांत से दूसरे प्रांत में पलायन करने वालों की संख्या पिछले एक दशक में ९ करोड़ ८० लाख तक जा पहुंची है। इसमें ६ करोड़ १० लाख लोगों ने ग्रामीण से ग्रामीण इलाकों में और ३ करोड़ ६० लाख लोगों ने गावों से शहरों की ओर पलायन किया। # • पिछले एक दशक को आधार मानकर अगर इस बात की गणना करें कि किसी वासस्थान को छोड़कर कितने लोग दूसरी जगह रहने...
More »वनाधिकार
साल २००६ के १३ दिसंबर को लोकसभा ने ध्वनि मत से अनुसूचित जाति एवम् अन्य परंपरागत वनवासी(वनाधिकार की मान्यता) विधेयक(२००५) को पारित किया। इसका उद्देश्य वनसंपदा और वनभूमि पर अनुसूचित जाति तथा अन्य परंपरागत वनवासियों को अधिकार देना है। यह विधेयक साल २००५ में भी संसद में पेश किया गया था, फिर इसमें कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए जिसमें अनुसूचित जनजाति के साथ-साथ अन्य पंरपरागत वनवासी समुदायों को भी इस...
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