पंजाब में खेती के लिए चावल, मक्का, कपास, सोयाबीन, गन्ना, बाजरा और मेंथा की आठ किस्मों को मंजूरी दी गई है। पंजाब एग्रीकल्चरल यूनीवर्सिटी (पीएयू) द्वारा विकसित इन किस्मों को स्टेट वैरायटी एप्रूवल कमेटी की बैठक में खेती करने के लिए मंजूरी दी गई। यह बैठक कृषि निदेशक मंगल सिंह संधू की अध्यक्षता में हुई। नई किस्मों की खूबियों के बारे में पीएयू...
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छोटे राज्यों के बड़े प्रश्न- रोहित जोशी
जनसत्ता 25 फरवरी, 2014 : भारत में राज्यों के पुनर्गठन का प्रश्न नया नहीं है। यह लगातार यक्ष प्रश्न बना रहा है कि आखिर इतने विविधतापूर्ण देश में राज्यों के पुनर्गठन का एक सर्व-स्वीकार्य और जायज तार्किक आधार क्या हो? साथ ही पृथक तेलंगाना का यह विवाद भी नया नहीं है और जितना हो-हल्ला इस मसले पर हमने पिछले दिनों में देखा उसकी एक लंबी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। 1956 में संसद...
More »नवउदारवाद से उपजी चुनौतियां- प्रभात पटनायक
जनसत्ता 22 फरवरी, 2014 : यूपीए सरकार और राजग सरकार और यहां तक कि ‘तीसरे मोर्चे’ की अल्पायु सरकार भी आर्थिक नीतियों के मामले में एक जैसी ही रहीं। आज भी, जब चुनावी विकल्प के रूप में राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी का शोरशराबा हो रहा है, आर्थिक नीतियों के स्तर पर शायद ही कोई बुनियादी फर्क हो। सच्चाई तो यह है कि मोदी खुद इस बात पर जोर देते...
More »गंगा में बढ़ रहा है घातक सुपरबग
भारतीय अनुसंधानकर्ताओं समेत वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि गंगा नदी में एंटीबायटिक रोधी सुपरबग हैं और गंगा किनारे बसे शहरों में वार्षिक उत्सवों के दौरान इन बैक्टीरिया का स्तर 60 गुना तक बढ़ जाता है। न्यूकैसल यूनिवर्सिटी, ब्रिटेन और दिल्ली के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी-दिल्ली) के विशेषज्ञों ने हिमालय के मैदानी क्षेत्रों में ऊपरी गंगा नदी के किनारे बसे सात स्थानों से पानी और तलछट के नमूने लिये। उन्होंने देखा कि...
More »संविधान में गांव की परिभाषा भी नहीं- आर के नीरद
भारत के संविधान में गांव की कोई परिभाषा नहीं है. जब गांव ही नहीं है, तो ग्राम गणराज्य भी नहीं है. यह बड़ा विरोधाभास है. महात्मा गांधी गांव गणराज्य की बात करते थे. वे आजादी का असली अर्थ गांवों की समरसता, आत्मनिर्भरता और लोकतंत्र में जन भागीदारी को मानते थे. देश आजाद हुआ और गणतंत्र भारत के लिए अपना संविधान बना, लेकिन इसमें गांव की परिकल्पना शामिल नहीं हो सकी. सब ने...
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