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सीजेआई गोगोई को क्लीनचिट देने वाली रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए: पूर्व सूचना आयुक्त

नई दिल्ली: पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को यौन उत्पीड़न मामले में क्लीनचिट देने वाली आंतरिक समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए. उन्होंने कहा कि आंतरिक जांच समिति द्वारा लिए गए निर्णय को सार्वजनिक न करने का कोई कारण या कानून आधार नहीं है. आचार्युलु ने कहा, ‘इस देश के लोगों को सूचित किया जाता है कि तीन न्यायाधीशों...

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दशकों के हासिल पर ग्रहण-- गौतम भाटिया

एक महिला अपने पुराने संस्थान के शक्तिशाली मुखिया पर उत्पीड़न और शोषण के आरोप लगाती है। आरोप ब्योरेवार हैं, ऑडियो और वीडियो प्रमाण के साथ। संस्थान के प्रमुख अगले ही दिन सुबह अपने दो सहयोगियों के साथ एक विशेष बैठक बुलाते हैं। वह शिकायतकर्ता के चरित्र हनन में लग जाते हैं और इसे संस्थान के विरुद्ध साजिश करार देते हैं। इस कार्य में उन्हें संस्थान के दो बहुत वरिष्ठ अधिकारियों...

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पुलिस का सबसे मुश्किल इम्तिहान- विभूति नारायण राय

वर्ष 1977 की शुरुआत। देश में सनसनी और उत्तेजना की बयार बह रही थी। किसी बडे़ अंधड़ की तरह आपातकाल देश को झिझोड़ता-झकझोरता गुजर चुका था और हम सभी विनाश की दृश्य और अदृश्य स्मृतियों को बुहारने में लगे थे। इसी समय देश का वह चुनाव हुआ, जिसने भारतीय समाज और राजनीति का परिदृश्य लंबे समय के लिए बदल दिया। यह वर्ष मेरे अनुभव संसार में भी बहुत कुछ जोड़ने...

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अगर आप समाचारों के ऑनलाइन पाठक हैं तो ये न्यूज एलर्ट जरुर पढ़ें!

भारत में समाचारों के आस्वाद की दुनिया तेजी से बदली है : लोगों का समाचारों पर से विश्वास घटा है और समाचार के पाठकों की दुनिया की एक बड़ी तादाद को आशंका सताती है कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर अपने राजनीतिक विचारों का इजहार किया तो उन्हें अधिकारी-वर्ग से परेशानी उठानी पड़ेगी.   अंग्रेजी भाषी पाठकों के बीच किये गये एक सर्वेक्षण के मुताबिक टेलिविजन, अखबार या फिर रेडियो नहीं बल्कि समाचार हासिल करने...

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वनबंधु कल्याण योजना: 100 करोड़ का बजट घटा कर एक करोड़ किया गया, ख़र्च नहीं हो रही राशि

नई दिल्ली: तारीख पे तारीख. ये अकेला डायलॉग भारतीय न्यायिक व्यवस्था की कहानी बता देता है. ठीक इसी तरह का एक शब्द भारतीय शासन व्यवस्था में काफी प्रचलित है. इस शब्द का नाम है ‘योजना'. सरकारें सोचती हैं कि योजना बना दो, विकास हो जाएगा. योजनाएं बनती हैं, पैसा आवंटित होता है और फिर उसके बाद योजनाओं को स्थानीय अधिकारियों के भरोसे क्रियान्वयन के लिए छोड़ दिया जाता है. पिछले 70 सालों...

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