पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछड़ेपन का मानक तय करने को लेकर गठित रघुराम राजन कमेटी की रिपोर्ट पर केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम के बयान का स्वागत किया है. रिपोर्ट के गुरुवार को सार्वजनिक होने के बाद प्रदेश जदयू कार्यालय पहुंचे मुख्यमंत्री ने पत्रकारों से कहा, हमलोगों के सिद्धांत की जीत हुई है. बिहार को विशेष राज्य के तर्ज पर बड़ी चीज मिलेगी. बिहार के हक की लड़ाई बिहार...
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अब विशेष राज्य के दर्जे की राह हुई आसान
पटना: बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा बहुत मायने रखता है. डॉ रघुराम राजन कमेटी की रिपोर्ट में बिहार फिट बैठता है. रिपोर्ट के आधार पर हम मानते हैं कि बिहार को विशेष राज्य जैसी सुविधा मिल जायेगी. हालांकि, यह और भी उचित होता कि मानक तय करने में प्रति व्यक्ति आय को आधार माना जाता. लेकिन , कमेटी की राय प्रति व्यक्ति उपभोग के आधार पर बनी है. मैंने अपनी ओर...
More »खनन से किसका हित, मिल कर सोचें- ।।किशन पटनायक।।
बिक्री लायक पदार्थो को ‘पण्य’(माल) कहा जाता है और उनके संग्रह को ‘संपत्ति’. आधुनिक समाज में संपत्ति को मूल्यों (रुपयों) में आंका जाता है. मैं अगर करोड़पति हूं, तो मेरी संपत्ति का मूल्य करोड़ों रुपयों में है. दुनिया में जितनी भी संपत्ति है, उनके मूल में हैं प्राकृतिक संसाधन. मेहनत, बुद्धि और मशीनों के द्वारा प्राकृतिक संसाधनों से विभिन्न पण्य वस्तुओं को बनाया जाता है. मशीनें भी खनिज धातु यानी प्राकृतिक...
More »जलयुद्ध की ओर बढ़ती दुनिया
विभिन्न अध्ययन एवं आकलन बताते हैं कि वर्ष 2050 तक विश्व की आबादी वर्तमान सात अरब से बढ़ कर नौ अरब तक पहुंच जायेगी. इस स्थिति में पानी और भोजन की मांग बढ़ेगी, जिससे जलवायु परिवर्तन की समस्या और भी गंभीर हो सकती है. दुनियाभर में पानी से जुड़े मसलों पर काम कर रहे संगठनों ने इसे लेकर चिंता जतायी है. इसी कड़ी में स्टॉकहोम में पिछले 22 वर्षो से...
More »गरीबी का एक फसाना आईएलओ के हवाले से
कहते हैं हकीकत कल्पना से कहीं ज्यादा हैरतअंगेज होती है। ऐसी ही हैरतअंगेज हकीकत है कि भारत में बीते बीस सालों में तेज आर्थिक-वृद्धि हुई है लेकिन गरीब कामगारों की तादाद में कोई खास कमी नहीं आई है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन(आईएलओ) के एक हालिया रिपोर्ट (इकॉनॉमिक क्लास एंड लेबर मार्केट इन्क्लूजन: पुअर एंड मिडिल क्लास वर्कर्स इन डेवलपिंग एशिया एंड द पैसेफिक) में कहा गया है कि भारत सहित पूरे दक्षिण एशिया में ज्यादातर (91 फीसदी) कामगार “एकदम गरीब”...
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