खास बात • मनरेगा में वित्तवर्ष 2015-16 में 235.6 करोड़ व्यक्ति-दिवसों के बराबर रोजगार का सृजन हुआ है. यह पिछले पांच सालों में अधिकतम है. • वित्तवर्ष 2015-16 में कुल 5.35 करोड़ परिवारों ने मनरेगा के तहत रोजगार की मांग की लेकिन केवल 4.82 करोड़ परिवारों को ही रोजगार दिया जा सका यानी 9.9 फीसद परिवारों को मांग के बावजूद रोजगार नहीं हासिल हुआ. • वित्तवर्ष 2015-16 में मनरेगा में प्रति परिवार औसतन 49 व्यक्ति दिवसों के बराबर...
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बेरोजगारी
एक नजर सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर लगातार ऊंची बनी होने के बावजूद भारत अपनी ग्रामीण जनता की जरुरत के हिसाब से मुठ्ठी भर भी नये रोजगार का सृजन नहीं कर पाया है। नये रोजगारों का सृजन हो रहा है लेकिन यह अर्थव्यवस्था के ऊंचली पादान के सेवा-क्षेत्र मसलन वित्त-जगत, बीमा, सूचना-प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी के दम पर चलने वाले हलकों में हो रहा है ना कि विनिर्माण और आधारभूत ढांचे के...
More »घटती आमदनी
खास बात • दिहाड़ी मजदूरों सहित हर श्रेणी के कामगार के मेहनताने की बढोतरी दर साल 1983-1993 की तुलना में 1993-94 से 2004-05 के बीच घटी है। # • साल 1983 से 1993-94 के बीच रोजगार की बढ़ोतरी की दर 2.03 फीसदी थी जो साल 1993-94 से 2004-05 के बीच घटकर 1.85 हो गई। साल 1993-94 से 2004-05 के बीच कामगारों के मेहनताने की बढ़ोतरी दर और आमदनी में भी पिछले दशक...
More »पलायन (माइग्रेशन)
खास बात • किसी प्रांत से उसी प्रांत में और किसी एक प्रांत से दूसरे प्रांत में पलायन करने वालों की संख्या पिछले एक दशक में ९ करोड़ ८० लाख तक जा पहुंची है। इसमें ६ करोड़ १० लाख लोगों ने ग्रामीण से ग्रामीण इलाकों में और ३ करोड़ ६० लाख लोगों ने गावों से शहरों की ओर पलायन किया। # • पिछले एक दशक को आधार मानकर अगर इस बात की गणना करें कि किसी वासस्थान को छोड़कर कितने लोग दूसरी जगह रहने...
More »वनाधिकार
साल २००६ के १३ दिसंबर को लोकसभा ने ध्वनि मत से अनुसूचित जाति एवम् अन्य परंपरागत वनवासी(वनाधिकार की मान्यता) विधेयक(२००५) को पारित किया। इसका उद्देश्य वनसंपदा और वनभूमि पर अनुसूचित जाति तथा अन्य परंपरागत वनवासियों को अधिकार देना है। यह विधेयक साल २००५ में भी संसद में पेश किया गया था, फिर इसमें कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए जिसमें अनुसूचित जनजाति के साथ-साथ अन्य पंरपरागत वनवासी समुदायों को भी इस...
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