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स्मृति ईरानी के नक्शेकदम पर नहीं है कंगना रनौत बल्कि वो ‘दबंगई’ की राह पर चल रही हैं

-द प्रिंट, इसे कंगना रनौत के नाम खुली चिट्ठी मानें. आपको क्या हो गया है? आप एक शानदार अभिनेत्री से एक ट्विटर ‘ट्रोल’ बन गई हैं. आप बॉलीवुड के भाई-भतीजावाद की सड़ांध को उजागर करने वाली एक साहसिक महिला और एक उत्साही नारीवादी से बदलकर भयावह व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की चिल्लाने और अकड़ने वाली प्रवक्ता बन गई हैं. आप दुनिया के अपने कदमों में होने का दावा करती हैं. और आपका कहना है...

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यह नहीं कहा जायेगा कि वक़्त थे अंधेरे बल्कि क्यों थे उनके कवि ख़ामोश?

-सत्याग्रह,  आंगन में पक्षी आंगन हो घर में तो कुछ न कुछ पक्षी वहां फुदकने-चहकने आ ही जाते हैं. अगर आप आंगन में दाने बिखेर दो तो उनकी भीड़ भी लग सकती है. आंगन घर का वह हिस्सा है जो, एक तरह से घर का अन्तरंग होते हुए भी बाहर को चुपचाप न्योतता रहता है. कविता ऐसा ही आंगन है और हमारा यह सौभाग्य रहा है कि लगभग सत्तर बरसों से हम...

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किसान आंदोलन को मिल रहा अन्य वर्गों का समर्थन

-कारवां, 2 दिसंबर को दिल्ली-हरियाणा सीमा के कुंडली पर चल रहे किसान आंदोलन में हम किसान देविंदर सिंह से मिले. तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ लाखों किसानों को 26 और 27 नवंबर को "दिल्ली चलो" आंदोलन में भाग लेते हुए राजधानी पहुंचना था लेकिन सुरक्षा बलों ने उन्हें दिल्ली की सीमाओं पर बैरिकेड लगाकर, आंसू गैस के गोले दागकर और पानी की बौछार कर रोक दिया. इसी तकरार के बाद 30...

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किसान क्या चाहते हैं और केंद्र सरकार क्या नहीं मानेगी

-इंडिया टूडे, करीब 20 किसान संगठनों के 26 नवंबर को पंजाब से दिल्ली तक हुए विरोध-प्रदर्शन और मार्च ने शायद केंद्रीय एजेंसियों तथा पंजाब भाजपा के नेतृत्व को हैरानी में डाल दिया. किसान संगठनों के सदस्य नए केंद्रीय कृषि कानूनों को अनुचित बताते हुए राष्ट्रीय राजधानी में डटे हुए हैं ताकि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर दबाव बनाया जा सके. इस किसान आंदोलन में अनुमान है कि करीब 2,00,000...

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कृषि क़ानूनों के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले किसान 'मीडिया' से क्यों हैं खफा?

-न्यूजलॉन्ड्री, 26 नवंबर को जब प्रदर्शन करने वाले किसान दिल्ली और हरियाणा के बीच सिंघु बॉर्डर पर आए तो उनकी एक शिकायत थी, "राष्ट्रीय मीडिया हमारे ऊपर कोई ध्यान क्यों नहीं दे रहा? क्या उन्हें बंद सड़कें दिखाई नहीं देतीं? क्या उन्हें किसानों की कोई परवाह नहीं?" इसके चार दिन बाद, उनकी परेशानी दूसरी थी जो उनके नारे में दिखाई देती है, "गोदी मीडिया, वापस जाओ". "गोदी मीडिया", अर्थात वो मीडिया संस्थान जो...

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