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भूख के खिलाफ अधूरी जंग- तवलीन सिंह

उस बच्चे की तसवीर इतनी भयानक, इतना दिल दहला देने वाली थी, कि मुंबई शहर में सिर्फ एक अखबार ने उसे छापा अपने पहले पन्ने पर। यह तसवीर उस दिन छपी, जब महाराष्ट्र की सरकार ने पिछले सप्ताह स्वीकार किया कि बीते वर्ष 24,000 बच्चे कुपोषण के कारण मर गए, भारत के इस सबसे विकसित राज्य में। महिला एवं शिशु विकास मंत्री वर्षा गायकवाड़ ने विधानसभा को एक लिखित जवाब...

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उत्तर प्रदेश में फिर सड़कों पर उतरे गन्ना किसान, कई जगह प्रदर्शन

अंबरीश कुमार लखनऊ, 12 जुलाई। उत्तर प्रदेश में किसान फिर सड़कों पर उतरने लगे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर धरना प्रदर्शन के साथ लाठी-गोली से प्रतिकार शुरू हो गया है। राज्य में चीनी मिलों पर किसानों के करीब साढ़े चार हजार करोड़ रुपए बकाया हैं, जिसमे ज्यादातर बकाया निजी क्षेत्र की दर्जन भर चीनी मिलों पर है, तो बाकी सहकारी क्षेत्र की मिलों पर। मुजफ्फरनगर में बकाया गन्ना मूल्य...

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ये है हरियाणा की जमीनी हकीकत, आंकडें बयां कर रहे हैं कहानी

करनाल. लाख कोशिशों के बावजूद हरियाणा में लिंगानुपात सुधर नहीं रहा। देश को आजाद हुए 64 साल हो चुके हैं लेकिन आज भी यहां लड़कियों की संख्या लड़कों के मुकाबले बहुत कम है। विकसित राज्यों में शुमार होने वाले इस प्रदेश में उन्हें बराबर का महत्व नहीं मिलता जबकि कई क्षेत्रों में वह लड़कों से बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं। प्रदेश में 1000 लड़कों पर सिर्फ 877 लड़कियां हैं। झज्जर जिले में तो यह...

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'आईस्क्रीम खरीद सकते हैं, आटे-चावल में एक रुपए की वृद्धि बर्दाश्त नहीं'

गृह मंत्री पी चिदंबरम एक बार फिर विवादित बयान देकर चर्चा में आ गए हैं. उन्होंने कहा है कि ‘भारत के मध्यम वर्ग के लोग महंगी आइस क्रीम खाते हैं, 15 रुपए की मिनरल वॉटर की बोतल खरीदते हैं, पर गेहूं-चावल के दामों में एक रुपए की वृद्धि बर्दाश्त नहीं करते.' चिदंबरम मंगलवार को बंगलौर में एक पत्रकार वार्ता को संबोधित कर रहे थे जब उन्होंने ये बयान दिया. उनके इस बयान...

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निर्मल भारत कैसे बनेगा- ऋषि कुमार सिंह

जनसत्ता 10 जुलाई, 2012: साफ-सफाई के मुद्दे पर भारत सरकार ने निर्मल भारत योजना बनाई है, जिसकी सफलता के लिए फिल्म अभिनेत्री विद्या बालन को अपना ब्रांड एंबेस्डर नियुक्त किया है। बात बस इतनी-सी है, लेकिन इसका असर और यहां से उपजे संदेश को महज साफ-सफाई की जरूरत तक नहीं समेटा जा सकता। इसे महज बाजार की प्रवृत्ति कह देना भी जल्दबाजी होगी। राजनीति जैसी गतिविधि के हित-अहित पर इसका आकलन...

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