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समानता का सपना- रुचिरा गुप्ता

जनसत्ता 14 मार्च, 2013: कोई भी बदलाव डरावना होता है। खासकर वैसा बदलाव, जो राजनीति और यौन भूमिका दोनों को प्रभावित करता है। सोलह दिसंबर को दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार कांड के व्यापक विरोध ने देश में एक चिनगारी सुलगा दी है। पुरुषों की हर तरह की हिंसा को खत्म करने के लिए स्त्रियों के आंदोलन की मांग लगातार होती रही है। विरोध-दर-विरोध में युवतियों का साथ युवक भी दे...

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महिला सशक्तीकरण के वास्ते- केपी सिंह

जनसत्ता 8 मार्च, 2013: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिला सशक्तीकरण की बात करना फैशन नहीं, जरूरत है। इक्कीसवीं शताब्दी में भी महिलाएं संविधान-प्रदत्त मूलभूत अधिकारों को पाने के लिए जद्दोजहद कर रही हैं। यह जद्दोजहद नई नहीं, सहस्राब्दियों पुरानी है। मानव-सभ्यता जब पृथ्वी पर पनपने लगी तो पुरुष ने अपनी शारीरिक सामर्थ्य का फायदा उठाते हुए पहला अधिकार स्त्री पर जताया था। महिलाओं के शोषण की कहानी वहीं से शुरू हो...

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सत्तर जैसा हाल, इक्यानबे जैसी आफत

नई दिल्ली, [अंशुमान तिवारी]। वित्त मंत्री के धमकाने पर विकास दर का आंकड़ा भले ही बदल जाए, लेकिन हकीकत बदलने वाली नहीं है। भारत के आर्थिक विकास की गति व्यावहारिक रूप से अब साठ-सत्तर के दशक वाली स्थिति में पहुंच गई है। विकास दर में से अगर विदेश व्यापार और विदेशी पूंजी को हटा दिया जाए तो देशी अर्थव्यवस्था पांच फीसद भी नहीं, बल्कि केवल 3 से 3.5 फीसद की दर से...

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एलपीजी का गड़बड़झाला: सब्सिडी आपकी, हड़प रही एजेंसियां

अमृतसर। कुछ गैस एजेंसियां केंद्र सरकार की ओर से एलपीजी के सिलेंडरों पर सब्सिडी सीमित करने के फैसले का नाजायज फायदा उठाने लगी हैं। यह आदेश 14 सितंबर को लागू हुआ था, इसलिए मार्च 2013 तक उपभोक्ताओं को सब्सिडी पर तीन-तीन सिलेंडर दिए जाने हैं। इसके बावजूद पिछले कुछ दिन से कुछेक एलपीजी एजेंसियां...

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छह साल की उम्र में सर से उठा मां का साया, समाज ने बना दिया नौकरानी

अम्बाला। तब उसकी उम्र करीब छह साल थी। मां का साया सिर से उठ चुका था। पिता की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी। उस समय उसे जरूरत थी कि कोई मदद के लिए आगे आए, सहारा बने, ताकि बच्ची का भविष्य बन जाए। ऐसे में पिता का एक जानकार आगे आया, लेकिन बच्ची का भविष्य...

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