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महामारी के दौरान हमारी सरकार और पुलिसिया बर्ताव

-न्यूजलॉन्ड्री, किसी बड़ी महामारी के बीत जाने के बाद, उससे जुड़े कुछ दृश्य और घटनाएं लोक-चेतना में स्थाई निवास बुन लेते हैं. कोरोना की दो लहरों के दौरान हुई मीडिया कवरेज में प्रवासी मजदूरों की घर वापसी, जलती चिताएं, ऑक्सीजन सिलेंडर भरवाने के लिए भागते लोग, स्वास्थ्य व्यवस्थाएं, लोगों के साथ पुलिसिया बर्ताव और सरकारी विज्ञापनों की तस्वीरों और खबरों ने हमारे जेहन में स्थाई जगहें बनाई. भविष्य में जब भी...

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यूपी: 43 जिलों में लगने हैं 204 पोषाहार यून‍िट, एक साल में लग पाए सिर्फ 2

-इंडियास्पेंड, आंगनबाड़ी के बच्‍चों को अच्‍छा पोषाहार उपलब्‍ध कराने के लिए उत्‍तर प्रदेश सरकार पोषाहार यून‍िट लगवा रही है। योजना के तहत यूपी के 43 जिलों में 204 यून‍िट लगनी हैं, जिसकी जिम्‍मेदारी 'यूपी राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन' को दी गई है। योजना शुरू होने के एक साल बीतने के बाद इन 204 यून‍िट में से सिर्फ दो यूनिट लग पाई हैं। यह दो यूनिट भी संयुक्त राष्ट्र के यूएन वर्ल्‍ड फूड...

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आधार की सीमाओं काे भुलाया जा रहा है, वोटर कार्ड को आधार से जोड़ने पर फायदा होगा या नुकसान

-दैनिक भास्कर, चार साल पहले 24 अगस्त 2017 को और फिर 26 सितंबर 2018 को सर्वोच्च न्यायालय की 9 और 5 न्यायाधीशों की पीठ ने ऐतिहासिक निर्णय दिए। 2017 का निर्णय निजता के अधिकार पर था, जिस पर सवाल उठा था आधार के संदर्भ में। पांच जजों में से एक ने आधार को असंवैधानिक बताया, लेकिन बाकियों ने इसके इस्तेमाल की सीमाएं रेखांकित कीं। पिछले 3 सालों का अनुभव यह है...

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खरीफ सीजन में बुंदेलखंड के एक गांव को 11 करोड़ का नुकसान, कैसे होगी किसान की आमदनी दोगुनी

-डाउन टू अर्थ, उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के बांदा जिले के अधिकांश गांवों में खरीफ की फसल पानी की कमी या अत्यधिक बारिश से बुरी तरह प्रभावित हुई है। सबसे बड़ा झटका तिल की खेती करने वाले किसानों को लगा है। जिले के कुछ गांव तो ऐसे हैं जहां लगभग 100 प्रतिशत किसानों ने तिल की बुआई की थी। बसहरी भी ऐसा ही एक गांव है। डाउन टू अर्थ ने...

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52 की उम्र में सीखी नयी तकनीक, चीया सीड्स उगाकर कमा रहीं तीन गुना मुनाफा

-द बेटर, कर्नाटक के एचडी कोटे तालुका की आदिवासी महिला, प्रेमा की कहानी काफी दिलचस्प है। वह हमेशा से अपनी आजीविका के लिए जंगलों पर ही निर्भर थीं। लेकिन जब साल 2007 में राज्य सरकार ने उन्हें नागरहोल जंगल से सोलेपुरा रिज़र्व फॉरेस्ट में बसाया, तब उनके लिए काफी कुछ बदल गया। साल 2007 में पुनर्वास के बाद, प्रेमा को खेती करने की सलाह दी गई। लेकिन प्रेमा के लिए यह सबकुछ...

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