इन आठ सालों में जनता ने इस कानून और इसके जरिये मिले अधिकार का भरपूर इस्तेमाल किया है, इस बात में कोई मतभेद नहीं हो सकता. व्यक्तिगत काम कराने के लिए भी और देश, समाज व समुदाय के हित में भी. सरकार की गलतियों, सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार और मनमानेपन को नंगा करने में भी इस कानून का इस्तेमाल आम जनता ने किया. इसमें वैसे लोग शामिल हुए, जिनका किसी राजनीतिक या...
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साझी लूट साझी सियासत- कनक तिवारी
जनसत्ता 16 अक्तूबर, 2013 : सर्वोच्च अदालत के दो ताजा लागू फैसलों और केंद्रीय चुनाव आयोग के एक गैर-लागू निर्णय के बाद चुनावी भ्रष्टाचार के दलदल में रसूखदार राजनीतिकों के धंसने का नया युग शुरू हो गया है। न्यायमूर्ति अनंगकुमार पटनायक और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने दस जुलाई के ऐतिहासिक निर्णय के जरिए यह कील ठोंक दी है कि दो वर्ष या इससे अधिक की सजा पाने वाला...
More »लोकतंत्र की बेहतरी के लिए- भारत डोगरा
हाल ही में जब केंद्रीय सूचना आयोग ने देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों को सूचना का अधिकार कानून के दायरे में लाने की बात की, तो ज्यादातर राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया। इसकी वजह साफ थी कि कोई भी दल अपनी आय के स्रोतों का खुलासा नहीं करना चाहता है, क्योंकि अगर वे सूचना के अधिकार कानून के दायरे में आ जाते हैं, तो उन्हें आय-व्यय के ब्योरे सार्वजनिक करने...
More »लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने वाले- तवलीन सिंह
राहुल गांधी के कहने पर सरकार ने अपना अध्यादेश वापस ले लिया पिछले सप्ताह। जिस दिन से राहुल जी ने अध्यादेश के खिलाफ आवाज उठाई, उस दिन से ही तय हो गया कि ऐसा होना ही था, लेकिन ऐसा लगने लगा है मुझे कि दिल्ली में बैठे कई वरिष्ठ राजनीतिक पंडितों को अपनी 'बकवास' पर विश्वास होने लगा है। सो अध्यादेश के वापस लिए जाने के अगले दिन अखबारों की सुर्खियों...
More »तभी अपराध मुक्त होगी राजनीति- नृपेन्द्र मिश्र
राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ जारी अभियान अपने निर्णायक मोड़ पर है, लेकिन इसे अभी खत्म नहीं माना जा सकता। तब तो और नहीं, जब हमारे संसदीय लोकतंत्र की नैतिकता में लगातार गिरावट की चिंता स्पष्ट है और इस पर सार्वजनिक तौर पर चर्चा भी हो रही है। इस दिशा में सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला 10 जुलाई, 2013 को आया, जिसमें देश की सबसे बड़ी अदालत ने जन प्रतिनिधित्व...
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