हाल-फिलहाल मेरी नज़र से एक दस्तावेज़ गुज़रा और मन उसी पर अटक गया- लगा कि इसे तो मैं एक वक्त से खोज रहा था. यहां सुविधा के लिए हम उस दस्तावेज़ का नाम ‘इको-नॉर्मिक्स' रख लेते हैं, क्योंकि एक तो इसमें ‘इकॉनॉमिक्स' यानि अर्थशास्त्र की छाया है और ‘इको' और ‘नार्मस्' से यह भी संकेत मिल जाता है कि बात यहां प्रकृति-परिवेश और उससे जुड़े मान-मूल्यों की हो रही है....
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समाज सुधार से टकराती राजनीति-- नीरजा चौधरी
नए साल की इससे अच्छी शुरुआत नहीं हो सकती थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद बीते तीन महीनों में 10 से 50 वर्ष की महिलाएं केरल के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश नहीं कर पाई थीं। जिन महिलाओं ने मंदिर में घुसने की कोशिशें कीं, उन्हें जबरन रोक दिया गया था। मगर बुधवार को अहले सुबह इस उम्र की दो महिला श्रद्धालु भगवान अयप्पा की पूजा करने में सफल रहीं...
More »पोषण और अंडे का संघर्ष- ज्यां द्रेज
बच्चों को लेकर भारत में एक बड़ा विरोधाभास दिखायी देता है. एक तरफ, घर में बच्चों को बहुत प्रेम किया जाता है. दूसरी तरफ, लोक-नीति में बच्चों पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है. आज भी गरीब बच्चों को न सही शिक्षा मिल रही है, न स्वास्थ्य सुविधा और न ही पोषण. इसके कारण बांग्लादेश और नेपाल की तुलना में भारत के बाल विकास से संबंधित आंकड़े कमजोर हैं. इससे...
More »किसानों की खुशहाली का कारगर रोडमैप- जयंतीलाल भंडारी
नये वर्ष 2019 की शुरुआत से ही देश की अर्थव्यवस्था के परि²दृश्य पर किसानों की कर्ज मुक्ति और विभिन्न उपहारों के लिए बड़े-बड़े प्रावधान दिखाई देने की संभावनाओं से कृषि और किसानों की खुशहाली दिखाई देगी। केन्द्र सरकार लघु एवं सीमांत किसानों की आय में कुछ बढ़ोतरी करने की नई योजना भी ला सकती है। तीन राज्यों में किसानों की कर्ज माफी के वचन से कांग्रेस के चुनाव जीतने के...
More »अपराध बदल रहे हैं, पुलिस नहीं-- विभूति नारायण राय
एक महीने में उत्तर प्रदेश जैसे बडे़ राज्य में दो पुलिसकर्मियों की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या भारतीय समाज में बढ़ रही हिंसा की प्रवृत्ति का द्योतक तो है ही, इसके पीछे कहीं न कहीं तंत्र की वह विफलता भी छिपी है, जो आधुनिक जरूरतों पर खरा उतरने में समर्थ पुलिस बल नहीं गढ़ पा रही। 20 से 25 वर्ष की आयु में समाज के विभिन्न तबकों से आने वाले...
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