-बंधुआ मुक्ति मोर्चा नेशनल कैंपेन कमेटी फॉर ईरेडिकेशन ऑफ़ बोंडेड लेबर उत्तरप्रदेश ने बंधुआ मुक्ति मोर्चा दिल्ली को दिनांक 13/11/2020 को सूचना दी कि 16 मजदूरों को को अल्पसंख्यक समुदाय से है को जिला संभल के मछाली गांव में एच प्लस एच भट्टे में चल रही बंधुआगिरी से मुक्त कराया जावे। तत्काल बंधुआ मुक्ति मोर्चा ने संभल जिले के जिलाधिकारी एवं एडीएम को एक शिकायत भेजकर मानव तस्करी से पीड़ित बंधुआ मजदूरों...
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मनु का क़ानून और हिंदू राष्ट्र के नागरिकों के लिए उसके मायने
-द वायर, हाल ही में चेन्नई में भाजपा ने अपनी नई नेता खुशबू के नेतृत्व में तमिलनाडु के सांसद थिरुमावलवन द्वारा मनुस्मृति के बारे में की गई टिप्पणियों के विरोध में प्रदर्शन किया गया था. यह शायद भाजपा द्वारा मनुस्मृति के समर्थन में पहला सार्वजनिक प्रदर्शन था. ऐसा लगता है कि संघ परिवार अब खुलकर इस पुरातन ग्रंथ के पक्ष मे हमलावर रुख अपनाकर सामने आना वाला है. दरअसल, 5 अगस्त 2019...
More »नीदरलैंड के किशोरों से 15.2 सेमी ठिगने हैं भारतीय किशोर, ये हैं वजह
-डाउन टू अर्थ, इंपीरियल कॉलेज लंदन के नेतृत्व में किए गए वैश्विक विश्लेषण के अनुसार भारतीय बच्चों और किशोरों की लंबाई नीदरलैंड्स के बच्चों की तुलना में करीब 15.2 सेंटीमीटर कम पाई गई है। इस शोध में 193 देशों के स्कूल-आयु वर्ग के बच्चों और किशोरों की ऊंचाई और वजन का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। जिसमें बच्चों की ऊंचाई के मामले में भारत को 182वां स्थान दिया गया है। जबकि...
More »कब मिलेगी प्रवासी मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा?
-न्यूजक्लिक, वैसे तो अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत प्रवासी मजदूरों के कल्याण के संरक्षण को लेकर कई कानून मौजूद हैं, लेकिन वे शायद ही कभी अमल में लाये जाते हैं। एक आदिवासी प्रवासी महिला की मौत ने जो कि भिवंडी के नजदीक धान के खेतों में काम करती थी, की मौत ने प्रवासी मजदूरों की सामजिक सुरक्षा की जरूरत को एक बार फिर से रेखांकित किया है। चालीस वर्षीया चन्द्राबाई थालेकर, जिनके तीन...
More »महामारी के दौर में बहुआयामी गरीबी के चक्र में फंसे लोग, 3 से 10 साल तक पिछड़ सकते हैं विकासशील देश!
बहुआयामी गरीबी मौद्रिक यानी पैसे आधारित गरीबी नहीं है बल्कि यह गैर-मौद्रिक आधारित गरीबी है, जो सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने की चुनौतियों से दृढ़ता से जुड़ी है. हालाँकि पहले गरीबी को केवल मौद्रिक यानी धन आधारित गरीबी के संदर्भ में ही परिभाषित किया गया था, लेकिन अब गरीबी को लोगों के अनुभवों की जीवंत वास्तविकता और उनके द्वारा भोगे जाने वाले अनेकों अभावों से जोड़कर देखा जाता...
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