'मरते हैं आरजू में मरने की/मौत आती है पर नहीं आती।" 7 मार्च 2011 को अरुणा रामचंद्र शानबाग बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य के मुकदमे का फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू ने मिर्जा गालिब के इस शे"र को याद किया था। सोमवार को जब अरुणा ने आखिरी सांस ली, तब काटजू ने एक बार फिर यह शे"र दोहराया। इस दर्दनाक कहानी की शुरुआत 26 नवंबर 1973 को होती...
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जिसका खाता, बस उसी को लाभ - मोहन गुरुस्वामी
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन नई सामाजिक सुरक्षा योजनाएं लॉन्च की हैं। इनमें दुर्घटना बीमा, जीवन बीमा और पेंशन योजनाएं शामिल हैं, जिनके मार्फत समाज के ऐसे वंचित-असंगठित तबके को लाभान्वित करने का लक्ष्य है, जिन तक अभी तक ऐसी योजनाओं के लाभ नहीं पहुंच पाए थे। लेकिन इसमें एक पेंच है। योजनाओं का लाभ वे ही लोग उठा सकेंगे, जिनका अपना एक बैंक खाता हो। हकीकत...
More »आरटीआइ की कुंद होती धार- चंदन श्रीवास्तव
सूचना के अधिकार को कानून बनानेवाले विधेयक पर राष्ट्रपति के दस्तखत 2005 में 15 जून को हुए थे, पर राज्यसभा ने इसे मंजूरी 12 मई को दे दी थी. चूंकि कानून इस मई महीने में अपने मौजूदा स्वरूप का दसवां साल पूरा कर रहा है, तो पूछा जाना चाहिए कि लोगों के हाथ इस कानून से कितने मजबूत हुए. इस कानून के अमल को लेकर मौजूदा केंद्र सरकार की गंभीरता का...
More »राजनीतिक चंदे में गोरखधंधे को रोकें - ए. सूर्यप्रकाश
कई साल पहले सजग नागरिकों ने बाहुबल और धनबल के रूप में उन दो दुष्टों की पहचान की थी, जो हमारे लोकतंत्र को कलंकित कर रहे हैं। निर्वाचन आयोग की लगातार कोशिशों, सुरक्षा बलों की बड़े स्तर पर तैनाती और लंबी चलने वाली चुनाव प्रक्रिया को बधाई देनी चाहिए जिनसे पहले दुष्ट यानी बाहुबल पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है। लेकिन धनबल की समस्या अभी तक चुनावी...
More »हादसे के बाद ही क्यों जागते हैं हम? - मिहिर आर भट्ट
इसके पहले बहुत कम ऐसा हुआ है कि भूकंप की किसी एक घटना ने इतने सारे इलाकों में इतनी सारी दरारें खोलकर हमारे सामने रख दी हों। धरती में भी, और आपदाओं का सामना करने की हमारी तैयारियों में भी। इस भूकंप ने नेपाल और भारत के एक बड़े हिस्से को सही मायनों में अपनी धुरी पर से 'हिलाकर" रख दिया है। इस भूकंप के बाद हमारे सामने कई मसले आन...
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