नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए ने देश के सबसे गरीब जिलों में भी जीत हासिल की है। एक विश्लेषण में यह बात सामने आई। विश्लेषण में मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे प्रमुख राज्यों से हमने 30 फीसदी या उससे अधिक गरीब घरों वाले जिलों को संसदीय सीट के आधार पर चुना। यूपी में भाजपा ने 10 सबसे गरीब जिलों में पड़ने वाली संसदीय सीटों पर बड़े अंतर...
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जाति के समीकरण का टूटना- मनीषा प्रियम
गुरुवार को आए चुनावी नतीजे भारतीय लोकतंत्र के लिए काफी अहम हैं। नरेंद्र मोदी, भाजपा और उनका राष्ट्रवाद अब केंद्र में एकछत्र शासन कर सकने की स्थिति में हैं। कांग्रेसवाद और क्षेत्रवाद, दोनों का एक साथ पतन हुआ है। बेशक कभी इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के लिए कहा जाता था कि वह ‘टीना' फैक्टर यानी ‘देअर इज नो अल्टरनेटिव टु इंदिरा गांधी' के कारण बार-बार जीतकर आती है,...
More »आदिवासी बच्चों के लिए खुले एकलव्य स्कूलों की स्थिति बदहाल, कई राज्यों में शुरू भी नहीं हुए
नई दिल्ली: सबका साथ, सबका विकास... प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का ये मूलमंत्र रहा है. लेकिन, क्या सचमुच ऐसा हुआ? मोदी सरकार के पांच साल के कार्यकाल के दौरान विभिन्न योजनाओं का विश्लेषण किया जाए तो यही पता चलता है कि नारों के शोर में विकास कहीं गुम हो गया है. मसलन, इस एक खबर पर पहले नजर डालिए. इकोनॉमिक टाइम्स में 18 अप्रैल 2016 को प्रकाशित एक लेख में...
More »क्या ‘ग्राम उदय से भारत उदय अभियान’ सिर्फ विज्ञापनों तक सीमित रह गया?
नई दिल्ली: कभी ‘शाइनिंग इंडिया' के नाम पर एक सरकार ने सिर्फ विज्ञापन पर करोड़ों रुपये खर्च कर दिए थे? अब इंडिया शाइनिंग हुआ या नहीं, कहना मुश्किल है. लेकिन, मोदी सरकार ने कुछ उसी तर्ज पर ग्राम उदय से भारत उदय नाम का अभियान शुरू किया, जिसका वास्तव में न तो ग्राम उदय से और न भारत उदय से कोई लेना देना था. यह अभियान असल में सरकार के प्रचार...
More »नारों के हिंडोले और हमारी हकीकत-- शशिशेखर
अपनी 72 साला आजादी में भारत ने कुलजमा 16 आम चुनाव देखे हैं। इसके बावजूद सवाल कायम है कि हमारा लोकतंत्र सही दिशा में बढ़ रहा है या नहीं? क्या वजह है कि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपने विशाल आकार को अभी वांछित प्रकार से व्यवस्थित नहीं कर सका है? बताने की जरूरत नहीं कि आजादी के बाद पहला आम चुनाव 1951-52 में हुआ था। उस समय हिन्दुस्तान का...
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