बिहार के वित्तीय हालात को दर्शाने वाली रिपोर्ट में - नियंत्रक और महालेखा परीक्षक यानि सी.ए.जी.- ने राज्य सरकार को आर्थिक लेखा- जोखा रखने के तौर तरीकों पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। एसी- डीसी बिल का जिन्न अब भी सरकार के गले की हड्डी बनी दिखाई देती है। कॉम्पट्रोलर ऐन्ड एकाउन्टेन्ट जनरल यानि सी.ए.जी. मार्च, 2010 तक खत्म होने वाले वित्तीय वर्ष के लिए जो लेखा- जोखा...
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एक मीडिया मुगल का पतन : केविन रैफर्टी
रूपर्ट मर्डोक के एक अग्रणी जीवनीकार ने कहा कि उनकी बेटी एलिजाबेथ ने एक पुस्तक के विमोचन के अवसर पर कहा कि जेम्स और ब्रुक्स ने कंपनी का बेड़ा गर्क कर दिया है। सही और गलत के विवेक के बिना संचालित हो रहे अखबारों की जवाबदेही से बचना रूपर्ट के साथ ही जेम्स के लिए भी मुश्किल साबित हो सकता है। रूपर्ट मर्डोक ने निश्चित ही ब्रिटिश पत्रकारिता और वैश्विक मीडिया...
More »बालश्रम का कलंक- निशिकांत ठाकुर
आजादी के छह दशक बीत जाने के बाद भी जो बातें भारत के लिए शर्म की बड़ी वजह बनी हुईं हैं बालश्रम को अगर उनमें सबसे ऊपर रखा जाए तो गलत नहीं होगा। आज भी हमारे देश में करोड़ों बच्चे खेलने-कूदने और पढ़ने-लिखने की उम्र में खेतों से लेकर होटलों और खतरनाक उद्योगों तक में अत्यंत विकट परिस्थितियों में जीतोड़ मेहनत करने के लिए मजबूर हैं। बेफिक्री की उम्र में ही उनके ऊपर इतनी...
More »कन्या हंता समाज?- संपादकीय(दैनिक भास्कर)
शिक्षा और समृद्धि के साथ मनुष्य उदात्त होता है, यह आम धारणा है। लेकिन लड़कियों के प्रति भारतीय समाज का बनता नजरिया इस धारणा पर गहरी चोट करता है। मशहूर पत्रिका ‘लैंसेट’ ने यह राज खोला है कि भारतीय समाज में जन्म से पहले ही हत्या का शिकार हो रही बेटियां आमतौर पर वो हैं, जो सामान्यत: शिक्षित और समृद्ध घरों में जन्म लेतीं। यह आंकड़ा अपने आप में बेहद दुखद...
More »हिरना समझ-बूझ वन चरना..- संपादकीय
जिसका शुरू से मुझे डर था, अब वही हो रहा है। लोकपाल के नाम पर उमड़ा अपूर्व जनाक्रोश अब अपूर्व दिग्भ्रम बनता चला जा रहा है। सबसे पहले अन्ना हजारे को ही लें। जब उन्हें अनशन पर बिठाया गया था, तब और अब, जबकि वे लोकपाल विधेयक कमेटी के सबसे महत्वपूर्ण सदस्य हैं, उनकी अपनी कोई सोच दिखाई ही नहीं पड़ती। उन्हें जो भी तत्काल सूझ पड़ता है, उसे वे अखबारों को...
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