पश्चिम बंगाल में व्यापक चुनार्वी ंहसा न तो कोई नई बात है और न ही यह कोई अजूबा। बंगाल का भद्रलोक समाज राजनीतिक हिंसा को एक रूमानी रूप देता रहा है। यहां हर दौर में सिर्फ झंडे बदल जाते हैं, जबकि डंडे और उनके काम उसी तरह रहते हैं। कुछ लोग इसे इतिहास से भी जोड़कर देखते हैं। जंगे आजादी के बाद में जब भारत का बंटवारा हुआ, तो जो...
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मुद्दों से ज्यादा प्रचार पर भरोसा-- संजय कुमार
चुनाव अभियानों का रूप-रंग हाल के वर्षों में काफी बदल चुका है। हालांकि किसी प्रत्याशी को अब अपने प्रचार के लिए निर्वाचन आयोग दो सप्ताह का ही वक्त देता है, जबकि पहले 21 दिन का समय मिलता था, लेकिन व्यावहारिक तौर पर अब चुनाव अभियान अतीत की तुलना में कहीं अधिक व्यापक हो गया है। मौजूदा लोकसभा चुनाव के लिए भी आधिकारिक तौर पर चुनाव अभियान की शुरुआत पहले चरण...
More »रूढ़िवादिता और संवैधानिक सुधार-- आकार पटेल
साल 1948 में हिंदू कोड बिल का प्रस्ताव पेश करते हुए भीमराव आंबेडकर ने इस विधेयक के मुख्य मुद्दे के रूप में उत्तराधिकार को रेखांकित किया था. हिंदू उत्तराधिकार कानून दो परंपराओं से आया था, जिन्हें मिताक्षरा और दायभाग के रूप में जाना जाता है. मिताक्षरा के अनुसार, एक हिंदू पुरुष की संपत्ति उसकी नहीं होती है. इसका साझा स्वामित्व पिता, पुत्र, पौत्र और प्रपौत्र का होता है. इन सभी...
More »बिहार व ओड़िशा को मिले विशेष दर्जा : जदयू
पटना : हाल में ओड़िशा में आये फोनी तूफान के बाद वहां के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने विशेष राज्य के दर्जे की मांग उठानी शुरू कर दी है.इस मांग का जदयू ने भी समर्थन किया है. पार्टी के प्रवक्ता और महासचिव केसी त्यागी ने प्रेस बयान जारी करते हुए कहा है कि जदयू ओड़िशा की इस मांग का पूरी तरह से समर्थन करता है. साथ ही उन्होंने बिहार को भी...
More »परीक्षा के अंक नहीं हैं जिंदगी का पैमाना- आशुतोष चतुर्वेदी
हाल में बिहार, झारखंड, सीबीएसइ और आइसीएससी बोर्ड के नतीजे आये हैं. साथ ही कई बच्चों के आत्महत्या करने की दुखद खबरें भी आयीं. ऐसी खबरें इसी साल आयीं हों, ऐसा नहीं हैं. ये खबरें साल-दर-साल आ रही हैं. दुर्भाग्य यह है कि अब ऐसी खबरें हमें ज्यादा विचलित नहीं करती हैं. कुछ दिन चर्चा होकर बात खत्म हो जाती है. गंभीर होती जा रही इस समस्या का कोई...
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