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किसानों की मौत छिपाता और सैनिकों की मौत भुनाता दिखावटी राष्ट्रवाद- अनुराग मोदी

1965 में एक तरफ देश की सीमा पर पाकिस्तान के साथ युद्ध हो रहा था और दूसरी तरफ देश सूखे और अकाल के संकट से जूझ रहा था. ऐसे समय में तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने नारा दिया था- ‘जय-जवान, जय-किसान.' आज पहले से ज्यादा किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे है- कुछ नहीं बदला, बल्कि इतने बुरे हालात कभी नहीं रहे. सरकार की नीतियों ने उनकी समस्या और बढ़ा...

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तीस लाख मतदाता चाहें भी तो इस चुनाव में मतदान नहीं कर सकते- आखिर क्यों, पढ़िए इस एलर्ट में !

‘वोट इंडिया वोट' के नारे के साथ एक सरकारी वेबसाइट पर लिखा है- ‘ मतदान प्रक्रिया में भाग लें, मतदाता होने पर गर्व महसूस करें.' लेकिन क्या कभी आपने सोचा कि भारत की एक बड़ी कामगार आबादी चाहे तो भी वोट नहीं कर सकती ? ऐसे कामगारों में एक नाम आता है ईंट भट्ठे के मजदूरों का ! इस बार ईंट भट्ठे पर काम करने वाले तकरीबन 30 लाख मजदूर अपने...

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कुंभ मेले के बाद जमा कचरे को हटाने के लिए तत्काल क़दम उठाए योगी सरकार: एनजीटी

नई दिल्ली: राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को इलाहाबाद में कुंभ मेले के बाद जमा कचरे को हटाने के लिए तुरंत क़दम उठाने को कहा है. एनजीटी ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि इलाहाबाद में कुंभ मेले के बाद जमा हुए ठोस कचरे को निपटाने के लिए तत्काल क़दम उठाए जाएं और इस संबंध में अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए. जस्टिस...

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अमूल की धरती गुजरात का मुख्य चुनावी मुद्दा बना डेयरी फार्मिंग उद्योग

अहमदाबाद: गुजरात ने 50 साल पहले भारत में ‘सफेद क्रांति ' लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन महासंघ लिमिटेड के डॉ. वर्गीज कुरियन के नेतृत्व में, जो बाजार में अग्रणी अमूल ब्रांड के मालिक हैं ने भारत को ऑपरेशन फ्लड के माध्यम से दुनिया के सबसे बड़े उत्पादक और दूध के उपभोक्ता में बदल दिया. लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है. भले ही अमूल भारत की सबसे...

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नागरिक होने का अर्थ केवल ज़िंदा रहना और वोट डालना भर रह गया है- रेयाजुल हक

हम एक अनोखे मुकाम पर खड़े हैं; देश में चुनाव हो रहे हैं और लोकतंत्र के भविष्य और जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर चिंता गहराती जा रही है. क्या चुनाव वो जादुई कालीन नहीं बताए गए थे, जिन पर सवार होकर लोकतंत्र हमारी उम्मीदों के आसमान में एक खुशहाल भविष्य के रंग बिखेरने वाला था? फिर ऐसा क्यों है कि ठीक चुनावों के दौरान समाज में बेचैनी और चिंताएं मज़बूत...

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