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बिना समकालीन हुए, शाश्वत तक पहुंचना संभव नहीं है

-सत्याग्रह, विश्वासघात नहीं आयु के अस्सी वर्ष 16 जनवरी को पूरे कर लिये. इनमें से साठ से अधिक वर्ष कविता के साथ गुजारे हैं. उसके साथ, उसको भरसक रचते हुए, पर उससे अधिक दूसरों की कविता से प्रतिकृत होते हुए. न मैंने कविता का साथ छोड़ा, न कविता ने कभी मेरा साथ छोड़ा. अंधेरे समयों में उसकी रोशनी मिलती रही और जब कोई और पास न था वह थी, बिना संकोच, उदार...

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साहित्य में विद्धता और रसिकता को अलग करके देखने का पूर्वाग्रह व्यापक है

-सत्याग्रह, विद्वत्ता और रसिकता साहित्य में, साहित्य की आलोचना और अध्यापन में विद्वत्ता को अक्सर सूखी और रसिकता को आर्द्र मानने का पूर्वाग्रह व्यापक है. पर ऐसे मुक़ाम, सौभाग्य से हमारे यहां रहे हैं जब विद्वत्ता और रसिकता किसी एक ही व्यक्ति में, लगभग आवयविक रूप से संलग्न, प्रगट हुए हैं. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल आधुनिक आलोचना के परिसर में सबसे पहले हैं. वे अधीत (शिक्षित) विद्वान थे और गहरे रसिक भी. दशकों...

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नागरिकों को ही ‘विपक्ष’ का विपक्षी बनाया जा रहा है!

-जनपथ, सरकार ने अब अपने ही नागरिक भी चुनना प्रारम्भ कर दिया है। सत्ताएँ जब अपने में से ही कुछ लोगों को पसंद नहीं करतीं और मजबूरीवश उन्हें देश की भौगोलिक सीमाओं से बाहर भी नहीं धकेल पातीं तो उन्हें अपने से भावनात्मक रूप से अलग करते हुए अपने ही नागरिकों का चुनाव करने लगती है। बीसवीं सदी के प्रसिद्ध जर्मन कवि, नाटककार और नाट्य निर्देशक बर्तोल्त ब्रेख़्त की 1953 में लिखी...

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एनआईए ने कबीर कला मंच के लोगों की गिरफ़्तारी के लिए दिया भाजपा-मोदी पर लिखे पैरोडी गीतों का हवाला

-द वायर, एल्गार परिषद मामले में सांस्कृतिक समूह कबीर कला मंच (केकेएम) के गायकों और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने के लिए उनके द्वारा भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ पैरोडी गीत गाने को एक आधार बनाया गया है. केकेएम के सागर गोरखे (32) और रमेश गयचोर (38) द्वारा गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए दायर की गई याचिका के जवाब में बॉम्बे हाईकोर्ट में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने अपने इस कदम में...

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यह नहीं कहा जायेगा कि वक़्त थे अंधेरे बल्कि क्यों थे उनके कवि ख़ामोश?

-सत्याग्रह,  आंगन में पक्षी आंगन हो घर में तो कुछ न कुछ पक्षी वहां फुदकने-चहकने आ ही जाते हैं. अगर आप आंगन में दाने बिखेर दो तो उनकी भीड़ भी लग सकती है. आंगन घर का वह हिस्सा है जो, एक तरह से घर का अन्तरंग होते हुए भी बाहर को चुपचाप न्योतता रहता है. कविता ऐसा ही आंगन है और हमारा यह सौभाग्य रहा है कि लगभग सत्तर बरसों से हम...

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