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बेदम होती स्वास्थ्य व्यवस्था : कोविड-19 संकट में तपेदिक के सबक

-कारवां, {1} दिसंबर 2019 में डॉ. आनंदे वुहान से आने वाली खबरों पर व्याकुलता के साथ नजरें जमाए हुए थे. चीन के शहरों में सार्स जैसा एक रहस्यमय वायरस फैल रहा था. उस समय अपने डॉक्टर मित्रों के साथ होने वाली चर्चा को याद करते हुए आनंदे ने मुझे बताया, “मैंने सुना कि वह वायुजनित बीमारी थी. हम सुन रहे थे कि रोगियों में खांसी, बुखार आदि जैसे ही लक्षण हैं.” आनंदे की...

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किस हाल में हैं असम के डिटेंशन कैंपों में बंद संदिग्ध नागरिक?

-सत्यहिंदी, पिछले साल असम के डिटेंशन कैंप उस समय चर्चा में आए थे जब 23 दिसंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया था कि भारत में कोई डिटेंशन सेंटर नहीं है। उन्होंने इसे अफ़वाह बताया था। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, ‘सिर्फ कांग्रेस और अर्बन नक्सलियों द्वारा उड़ाई गई डिटेन्शन सेन्टर वाली अफ़वाहें सरासर झूठ है, बद-इरादे वाली है, देश को तबाह करने के नापाक इरादों...

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आदिवासियों के सवालों पर चुप्पी क्यों?

-डाउन टू अर्थ, भारत जैसे महादेश में आज आदिवासियत पर विमर्श अपरिहार्य है। वास्तव में यह केवल अस्मिता अथवा अधिकारों का मसला मात्र नहीं है - आदिवासियत की प्रासंगिकता उन तमाम संदर्भों से भी है, जो आदिवासी समाज के संपन्नता से विपन्नता तक के संक्षिप्त इतिहास में आज कहीं जाहिर-अजाहिर तौर पर दर्ज हैं। सरकारों के लिये आदिवासियत का पूर्ण-अपूर्ण अर्थ आदिवासी समाज का 'संवैधानिक दर्जा' है। एक ऐसा संवैधानिक दर्जा,...

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जांच में फर्जीवाड़ा?

-इंडिया टूडे, दिल्ली में इस साल फरवरी में हुए दंगों की जांच ने इस सप्ताह नया मोड़ ले लिया जब दिल्ली सरकार और दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की तथ्यान्वेषी रिपोर्ट, में दिल्ली पुलिस पर जांच में 'पक्षपात' और हिंसा में 'लिप्तता' का आरोप लगाया. रिपोर्ट को नौ सदस्यों के पैनल ने तैयार किया है जिसका नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के वकील एम.आर. शमशाद कर रहे थे. यह दंगों पर अधिकृत किसी एजेंसी की...

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दिल्ली दंगा: क्या दिल्ली पुलिस जांच को 'विशेष दिशा’ में ले जाना चाहती है?

-आउटलुक, चीन के विपरीत भारत की सफल सरकारें बहुत कुछ पाने में सफल रही हैं। 1984 के दिल्ली दंगों और गुजरात में 2002 की सामूहिक जनसंहार से लेकर समय-समय पर सांप्रदायिक हिंसा और जम्मू-कश्मीर में दमन जैसी घटनाएं हुई। फिर भी भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा कटघरे में खड़ा होने से बच गया क्योंकि इसे लोकतंत्र के रूप में देखा जाता है। इन सभी मामलों में यह माना गया कि कानून का शासन...

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