-आउटलुक, “आम लोगों के लिए महंगाई ज्यादा रहेगी और आमदनी कम, अर्थव्यवस्थाह पटरी पर नहीं लौटेगी” आज बेरोजगारी देश में सबसे बड़ा मुद्दा है, जिसके खिलाफ युवा प्रदर्शन कर रहे हैं। साठ प्रतिशत लोगों की आमदनी घट गई है। किसानों की भी आय घटी है। माइक्रो सेक्टर में समस्या है, वहां अनेक उद्यम बंद हुए हैं। अभी जरूरत इस बात की थी कि कैसे इन सबकी मदद की जाए। निचले तबके के...
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क्यों पूंजीवादी सरकारें बेरोज़गारी की कम और मुद्रास्फीति की ज़्यादा चिंता करती हैं?
-न्यूजक्लिक, पूंजीवादी सरकारें हमेशा ही बेरोजगारी बढ़ाने के जरिए मुद्रास्फीति पर नियंत्रण कायम करने की कोशिश करती हैं। इसका, इन दोनों के बीच किसी टिकाऊ संतुलन में उनके विश्वास से यानी दोनों को आपस में जोडऩे वाले किसी स्थिर चाप पर विश्वास करने से, कुछ लेना-देना नहीं है। यहां तक कि जो लोग मुद्रास्फीति के दूसरे-दूसरे कारण मानते हैं, जैसे मुद्रा की फालतू आपूर्ति (‘मालों की कम मात्रा के पीछे जरूरत...
More »नदियों में दवाओं के प्रदूषण से स्वास्थ्य के लिए बढ़े खतरे: अध्ययन
-दयानिधी, दुनिया भर की नदियों में दवा या फार्मास्युटिकल प्रदूषण पर किए गए एक अध्ययन ने दिल्ली और हैदराबाद सहित दुनिया भर में नदी के पानी के नमूनों का मूल्यांकन किया है। नदी के नमूनों में मधुमेह, मिर्गी और दर्द निवारक दवाओं के अंश मिले हैं। जो हमारी पारिस्थितिकी और लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। यह नदियों में फार्मास्यूटिकल के अवशेषों का पता लगाने तथा उन्हें मापने वाला पहला अध्ययन...
More »यूपी रोजगार स्कीम: भर्ती, पेपर लीक, लेट-लतीफी और अदालत के चक्कर
-न्यूजलॉन्ड्री, उत्तर प्रदेश सरकार विज्ञापन के ज़रिए राज्य में बेरोज़गारी दर कम दिखा रही है. साथ ही इन विज्ञापनों में 2017 से अब तक कुल 4.5 लाख युवाओं को नौकरियां देने की बता कही गई है. लेकिन प्रदेश में छात्र परेशान हैं क्योंकि यूपी में भर्तियां लटकी हुई हैं. 25 जनवरी को बिहार और उत्तर प्रदेश के छात्रों का सब्र टूट गया. दरअसल रेलवे भर्ती बोर्ड (आरआरबी) ने ग्रुप डी और एनटीपीसी...
More »आर्थिक विकास तो महत्वपूर्ण है, लेकिन भारत को बेरोजगारी, गरीबी, स्वास्थ्य, पर्यावरण पर भी ध्यान देना जरूरी है
-द प्रिंट, बजट और आर्थिक सर्वेक्षण से व्यापक अर्थव्यवस्था के लिए सरकार की जो रणनीति उभरती है उसे इन शब्दों में सरलता से कहा जा सकता है—आर्थिक वृद्धि सभी समस्याओं का समाधान कर देगी. यह रणनीति दो दशक पहले कारगर होती थी जब व्यापक अर्थव्यवस्था के संकेतक आज के वित्तीय घाटे के लिहाज से हुआ करते थे, सरकारी कर्ज पर ब्याज भारी होता था, और बैंक समस्याओं से ग्रस्त होते थे....
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