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दिल्ली में करीब 32 फीसदी लोगों के फेफड़े खराब

नई दिल्ली । राजधानी दिल्ली में प्रदूषण पर मचे बवाल के मद्देनजर दिल्ली सरकार ने लोगों के फेफड़ों की जांच शुरू कराई तो चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए। पिछले तीन दिन में 331 लोगों के फेफड़ों की जांच की गई। इनमें से करीब 32 फीसदी लोगों के फेफड़े खराब मिले। डॉक्टरों ने उन्हें इलाज की सलाह दी है। ऐसे में स्पष्ट है कि दिल्ली की आबोहवा फेफड़ों पर विपरीत प्रभाव...

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नेहरू की विरासत का मूल्यांकन जरूरी - पुष्‍पेश पंत

पिछले लगभग डेढ़ साल से हमारे देश में बहस छिड़ी हुई है कि जबसे केंद्र में मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार का गठन हुआ है, तभी से नेहरू की विरासत को नष्ट करने का षड्यंत्रकारी अभियान जारी है। मोटा-मोटा तर्क यह है कि नेहरू की विरासत का अभिन्न् अंग जनतांत्रिक संस्कार और धर्मनिरपेक्ष विचार है। इसका कोई मेल फासीवादी मानसिकता वाले सांप्रदायिक तत्वों से नहीं हो सकता। इसके अलावा...

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इनाम और ओहदे लौटाने से क्या होगा? - विष्‍णु खरे

1954-55 में जब भारत सरकार ने साहित्य अकादेमी की स्थापना की थी तब देश में कांग्रेस का शासन था। उसके संस्थापक-पितरों में जवाहरलाल नेहरू, सर्वपल्ली राधाकृष्णन, मौलाना अबुल कलाम आजाद और डॉ. जाकिर हुसैन जैसे राजनीतिक-सांस्कृतिक युगनिर्माता थे। बाद में कभी इंदिरा गांधी भी अकादेमी की सदस्य रहीं, जब वे केंद्रीय सूचना तथा प्रसारण मंत्री थीं। अकादेमी के संस्थापक-सचिव कृष्ण कृपालाणी थे, जो रबींद्रनाथ ठाकुर की एकमात्र संतान नंदिता के...

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मजहबी तालीम से आगे बढ़ें मदरसे - तुफैल अहमद

पिछले दशकों के आंकड़े गवाह हैं कि मदरसों में पढ़ने वाले भारतीय मुसलमान भौतिकशास्त्री, अर्थशास्त्री, चार्टर्ड एकाउंटेंट, सॉफ्टवेयर इंजीनियर, डॉक्टर और यहां तक कि राजनीतिज्ञ भी नहीं बन पाते। मदरसे मुस्लिमों को सार्वजनिक जीवन से बाहर रखने के कारक बन जाते हैं। हां, कुछ मदरसों के छात्र आधुनिक पेशे में प्रवेश पा लेते हैं, लेकिन इसमें मदरसों की भूमिका नहीं है, बल्कि यह उनका व्यक्तिगत सद्प्रयास है। इस बात के भी...

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'कैम्पस' पर बढ़ रहा है दबाव - रामचंद्र गुहा

कोई एक साल पहले जब स्मृति ईरानी को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री बनाया गया था, तो मैं उनकी नियुक्ति पर नाक-भौं सिकोड़ने वाले लोगों में शामिल नहीं था। मैंने यूपीए सरकार के ऐसे विदेशी डिग्रीधारी एचआरडी मिनिस्टरों को देखा था, जिन्होंने अपने विभागीय दायित्वों में न के बराबर दिलचस्पी दिखाई थी। उनकी तुलना में स्मृति ईरानी कहीं ऊर्जावान और सक्रिय नजर आती थीं। उन्हें देखकर उम्मीद जगती थी कि...

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