हमारे देश की नींव दो लोगों के कंधे पर खड़ी है, इनमें प्रथम जवान हैं दूसरे किसान हैं। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने नारा दिया था- जय जवान, जय किसान। वर्तमान सरकार के पिछले 18 महीने के कार्यकाल में कृषि के क्षेत्र को बहुत ही बेरहमी से कुचला गया है। कृषि भारतीय अर्थव्यस्था की रीढ़ है। न केवल जीडीपी में इसका 16 प्रतिशत का योगदान है, बल्कि लगभग 50...
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कृष्णा का गोदावरी से आज होगा मिलन- मिथिलेश झा
नदियों के तट पर सभ्यताएं तो विकसित होती ही हैं, किसी भी देश की अर्थव्यवस्था वहां की नदी और उसमें उपलब्ध के उचित प्रबंधन पर ही निर्भर होती है. खासकर भारत जैसे देश में जब मॉनसून दगा दे जाये, तो नदियों और नहरों का पानी ही किसानों का सहारा होता है. प्रकृति ने भारत को विशाल नदियों की नेमत बख्शी है. इसमें बड़ी से छोटी नदियां तक शामिल हैं. कई...
More »विकास के कोलाहल में- अरविन्द कुमार सेन
देश में सामाजिक-आर्थिक और जातीय जनगणना (एसइसीसी) के अलग-अलग पहलुओं पर बहस चल रही है। कुछ जानकार इस तथ्य की तरफ इशारा कर रहे हैं कि इस जनगणना ने भारतीय अर्थव्यवस्था के कई स्याह हिस्सों पर रोशनी डाली है। विकास के कोलाहल में स्याह हिस्सों को कोई भी सरकार नहीं देखना चाहती। चाहे वह कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकार रही हो, जिसने इस जनगणना के आंकड़ों को जानबूझ कर...
More »किसानों के लिए ख्याली पुलाव- भरत झुनझुनवाला
असमय बारिश तथा तूफान से संपूर्ण उत्तर भारत में खेती का भारी नुकसान हुआ है और लगभग एक हजार किसान आत्महत्या करने को मजबूर हुए हैं. इन आत्महत्याओं का ठीकरा सिर्फ मौसम पर फोड़ना उचित नहीं होगा, क्योंकि ऐसी घटनाएं होती ही रहती हैं. असल समस्या है कि किसान की सहनशक्ति का हृस हो गया है. किसान का बैंक बैलेंस समाप्त हो गया है. एक फसल खराब हुई, तो वह...
More »यूपी - बेमौसम बारिश से तबाह किसानों के साथ मुआवजे के नाम पर मजाक
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में बेमौसम बारिश से बर्बादी के कगार पर पहुंचे किसानों को कुदरती कहर से कहीं ज्यादा दर्द सरकारी अब मुआवजे के नाम पर दिया जा रहा है। एक तरफ फसलों की तबाही तो दूसरी ओर सदमे से टूटती सांसों से कृषक परिवारों पर दोहरी मार पड़ी है। बादलों की गडगड़ाहट अब भी किसानों में खौफ पैदा कर देती है, इसके बावजूद दूसरों का पेट भरने वाले किसानों...
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