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महामारी के दौर में बहुआयामी गरीबी के चक्र में फंसे लोग, 3 से 10 साल तक पिछड़ सकते हैं विकासशील देश!

बहुआयामी गरीबी मौद्रिक यानी पैसे आधारित गरीबी नहीं है बल्कि यह गैर-मौद्रिक आधारित गरीबी है, जो सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने की चुनौतियों से दृढ़ता से जुड़ी है. हालाँकि पहले गरीबी को केवल मौद्रिक यानी धन आधारित गरीबी के संदर्भ में ही परिभाषित किया गया था, लेकिन अब गरीबी को लोगों के अनुभवों की जीवंत वास्तविकता और उनके द्वारा भोगे जाने वाले अनेकों अभावों से जोड़कर देखा जाता...

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टाइम यूज सर्वे: महिलाओं के गले में बंधा है घर का चुल्हा चौंका और देखभाल का अवैतनिक काम

अन्य कई कारणों के अलावा, देश में पुरूषों के मुकाबले महिलाओं की कम श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) के पीछे एक कारण (अर्थशास्त्रियों के अनुसार) यह है कि युवा लड़कियां शिक्षा ग्रहण कर रही हैं, जिसकी वजह से माध्यमिक और उच्च शैक्षिक स्तर पर महिलाओं के एनरोलमैंट में सुधार देखने को मिला है. इसका अर्थ यह है कि अधिक से अधिक भारतीय महिलाएँ अपनी शिक्षा को जारी रखने के लिए...

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लॉकडाउन के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली को रोका जा सकता था

-द वायर, अप्रैल-मई 2020 में राष्ट्रीय लॉकडाउन से लोगों के रोजगार और आय पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा. उदाहरण के लिए, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में सेंटर फॉर इकोनॉमिक परफॉरमेंस के द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार लगभग आधे शहरी कामगारों ने उस अवधि के दौरान कोई आय अर्जित नहीं की. कई सार्वजनिक सेवाएं भी कम या बंद कर दी गईं. इसमें नियमित स्वास्थ्य सेवाएं शामिल हैं. लॉकडाउन के दौरान...

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भारत के दक्षिणी राज्यों में लगभग 10 लाख महिलाओं ने कैसे बंद किया बीड़ी बनाना

द प्रिंट, ऐसे समय में, जब भारत में बहस चल रही है कि महिला मज़दूरों पर बीड़ी उद्योग के बोझ को कैसे कम किया जाए, देश के दक्षिणी सूबे इसका एक खाका पेश कर रहे हैं. 1993 से 2018 के बीच, भारत में बीड़ी मज़दूरों की संख्या में, कुल मिलाकर 21 लाख का इज़ाफा हुआ है लेकिन दूसरी तरफ एक अच्छी खासी गिरावट भी देखी गई. दक्षिणी सूबों- तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश-तेलंगाना...

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उत्तर प्रदेश भारत की कमजोर कड़ी है, इसे चार या पांच राज्यों में बांट देना चाहिए

द प्रिंट,  आखिर उत्तर प्रदेश ने हमें कोरोना महामारी और चीनी घुसपैठ की ‘सातों दिन 24 घंटे’ खबरों से थोड़ी राहत दिला दी. अब उलझन यह है कि उसे शुक्रिया कहें या न कहें? क्योंकि संदर्भ उतना ही चिंताजनक है. जितना जानलेवा महामारी के खतरे का या घुसपैठ पर उतारू एक पड़ोसी का हो सकता है. एक आदमी को एक ऐसे कथित ‘एनकाउंटर’ में मार डाला गया है जिसे इतने भद्दे...

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