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सतही शिक्षा व्‍यवस्‍था और श‍िक्षकों की कमी: देश में बढ़ते कोचिंग कल्चर की असल वजह?

इंडियास्पेंड, 27 जनवरी शीतलहर के चलते उत्तर भारत के स्कूलों की समय सारणी में बदलाव किए गए हैं। लेक‍िन 12 वर्षीय आयुष यादव कड़ाके की ठण्ड में सुबह लगभग 8 बजे काले रंग का बैग कंधे पर टांगे मम्मी-पापा को बाय बोल ई-रिक्शॉ पर बैठ कोचिंग क्लास के लिए निकल जाते हैं, फ‍िर वहां से सीधे स्‍कूल। प्राइवेट कंपनी में मार्केटिंग का काम करने वाले आयुष के पिता शिव शंकर यादव, 36, कहते...

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एचईसी के कर्मचारियों को एक साल से नहीं मिला है वेतन, अदालत का रुख़ करने पर कर रहे हैं विचार

द वायर, 26 जनवरी कुछ साल पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के लिए लॉन्च पैड बनाने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम हैवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन (एचईसी) के लगभग 1,300 कर्मचारियों को एक साल से अधिक समय से वेतन नहीं मिला है. कर्मचारियों ने इस मुद्दे का जल्द समाधान नहीं होने पर अदालत का रुख करने की चेतावनी दी है. कर्मचारियों ने आरोप लगाया कि इस स्थिति के कारण वे अपने बच्चों के...

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एक चौथाई स्कूलों में बच्चों के लिए पीने के पानी की सुविधा नहीं: एन्युअल एजुकेशन रिपोर्ट

द वायर, 22 जनवरी देश में स्कूलों में शौचालय, पेयजल, मिड-डे मील, पुस्तकालय, कम्प्यूटर, बिजली कनेक्शन जैसे शिक्षा के अधिकार से जुड़े स्कूली मानकों में सुधार की रफ्तार बेहद मामूली है और अभी भी एक चौथाई (23.9 प्रतिशत) स्कूलों में पीने के लिए पानी तक उपलब्ध नहीं है. साथ ही लगभग एक चौथाई स्कूलों (23.6 प्रतिशत) में विद्यार्थी शौचालय की सुविधा का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं. स्कूलों के हालात को...

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भूख की वजह से छूट रही श्रीलंकाई बच्चों की पढ़ाई

डीडब्ल्यू हिंदी, 20 जनवरी श्रीलंका के सबसे प्रमुख अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे के समीप बसे उपनगर काटुनायके में रहने वाली कपड़ा फैक्ट्री की कर्मचारी नादिका प्रियदर्शनी अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पा रही हैं. इसके पीछे की वजह है भूख. उनकी माली हालत इतनी खराब हो चुकी है कि वे अपने परिवार के लिए दोनों समय के भोजन का इंतजाम तक नहीं कर पा रही हैं. देश में बढ़ते आर्थिक संकट की वजह...

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‘डॉक्टर बनना है’, छत्तीसगढ़ में बांस के बने ‘पोर्टाकेबिन’ स्कूल आदिवासी बच्चों के सपनों को कर रहे पूरा

दिप्रिंट, 19 जनवरी रविवार का दिन है. दोपहर में सूरज की चमक नीचे तक आ रही है और बांस से बने पोर्टाकेबिन वाली कक्षा में बच्चों के फुटबॉल खेलने की आवाजें सुनाई दे रही है. मगर, इन सब के बीच चौदह वर्षीय रिंकू कुमार बाहर से आती किलकारियों और हंसी से बेखबर अपनी बायोलॉजी की पाठ्यपुस्तक को पूरी तल्लीनता के साथ देखते हुए बैठा है, उसके सामने खुले पन्नों पर मानव...

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