भारत के लोग दुनिया के और देशों के लोगों के मुकाबले कितने खुश हैं, इसका जवाब हमें वैश्विक खुशहाली सूचकांक से मिलता है। जवाब यह है कि दुनिया के एक सौ दस देश हमसे ज्यादा खुशहाल हैं। इतना ही नहीं, खुशी के इस पैमाने पर हम लगातार नीचे आते जा रहे हैं। हाल में वैश्विक खुशहाली सूचकांक से पता चला है कि भारत वर्ष 2014 में एक सौ छप्पन देशों...
More »SEARCH RESULT
संवेदनहीन व्यवस्था और लापरवाह चिकित्सक-- सुनीता मिश्रा
दुनिया भर में डॉक्टरों को भगवान का पर्याय माना जाता है। लेकिन पैसों की भूख और लापरवाही के कारण उनमें संवदेनशीलता शून्य होती जा रही है। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के झांसी में एक ऐसा ही दिल दहला देने वाला मामला सामने आया, जहां महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने इलाज के लिए आए एक व्यक्ति के सिर के नीचे उसी का कटा हुआ पैर रख तकिया बना दिया।...
More »नौनिहालों की फिक्र किसे है--- देवेन्द्र जोशी
हाल ही में आई यूनिसेफ की रिपोर्ट चेताती है कि नवजात शिशुओं की मृत्यु दर के मामले में भारत की स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। भले ही इस मामले में हम पाकिस्तान से बेहतर स्थिति में हों, लेकिन हमारी स्थिति बांग्लादेश, नेपाल और भूटान से भी बदतर है। भारत नवजात शिशुओं की मृत्यु दर के मामले में इथियोपिया, गिनी-बिसाऊ, इंडोनेशिया, नाइजीरिया और तंजानिया के समकक्ष खड़ा दिख रहा है। भारत में...
More »सामाजिक एका का अधूरा एजेंडा - (कै.) आर विक्रम सिंह
हमारे राजनीतिक परिदृश्य में संभावनाओं, नेतृत्व एवं विकल्पों की बहुतायत है। इस बहुतायत से हम भलीभांति परिचित हैं और साथ ही इससे भी अवगत हैं कि हमारे पास धार्मिक नेतृत्व भी है, जो धर्म एवं हमारी परंपराओं के बारे में मार्गदर्शन देता रहता है। इन दोनों के मध्य एक बहुत बड़ा रिक्त क्षेत्र है, जो समाज का है। अपने यहां सामाजिक नेतृत्व का अकाल-सा है। समाज का एकीकरण किसी का...
More »बेबस मरीज और लूट का इलाज--- अश्विनी शर्मा
एक समय था जब लूट सामंती व्यवस्था द्वारा होती थी और अपनी जान की सलामती के लिए ज्यादातर लोग विरोध नहीं कर पाते थे। वह सामंती व्यवस्था समाप्त हो चुकी है और आज भारत विश्व-पटल पर अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन आम आदमी के साथ लूट का सिलसिला आज भी जारी है। बस, इस लूट के तरीके बदल गए हैं। अब यह लूट बैंकों के...
More »