डाउन टू अर्थ, 24 अप्रैल भारत की तरफ से संयुक्त राष्ट्र में दिए एक प्रस्ताव के आधार पर वर्ष 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स घोषित किया गया है। वैश्विक स्तर पर मोटे अनाजों का सबसे बड़ा उत्पादक होने के नाते भारत इससे लाभान्वित हो सकता है। 1960 के दशक में हरित क्रांति के बाद से भारत ने गेहूं और धान पर ही ध्यान केन्द्रित कर दिया था। लेकिन, हाल के समय...
More »SEARCH RESULT
वैश्विक बाजार में डीएपी की कीमत गिरकर 553 डॉलर और यूरिया की 315 डॉलर तक आई
रूरल वॉयस, 24 अप्रैल डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) और यूरिया की कीमतों में लगातार गिरावट का रुख जारी है। वैश्विक बाजार में डीएपी की कीमत गिरकर 553 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई है, जो फरवरी में 640 डॉलर प्रति टन थी। नई कीमत पर सऊदी अरब की एक कंपनी के साथ हाल ही में निजी क्षेत्र की एक भारतीय कंपनी का सौदा हुआ है। वहीं यूरिया की कीमत 315 से...
More »जीरो-डोज बच्चों के मामले में पहले नंबर पर भारत, जीवन रक्षक टीकों से पूरी तरह वंचित हैं 27 लाख बच्चे
डाउन टू अर्थ, 20 अप्रैल दुनिया में जीरो-डोज बच्चों के मामले में भारत पहले स्थान पर है। जहां 27 लाख बच्चों को जीवन रक्षक टीकों की एक भी खुराक नहीं मिली है। देखा जाए तो आजादी के 75 वर्ष बाद भी देश में स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति दयनीय है, जोकि चिंता का विषय है। यदि महामारी से पहले के आंकड़ों को देखें तो जहां देश में शून्य-खुराक वाले बच्चों की संख्या 13...
More »भारत की जनसंख्या 2023 में 142.8 करोड़ लोगों के साथ चीन को पीछे छोड़ने की राह पर: यूएन रिपोर्ट
बुधवार को जारी संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन (State of World Population) रिपोर्ट 2023 के मुताबिक, इस साल के मध्य तक भारत की आबादी 142.86 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है, जो चीन की आबादी 142.57 करोड़ से अधिक होगी, जिसका आशय है कि भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने की राह पर है. इंडियन एक्सप्रेस ने बताया है कि रिपोर्ट के अनुसार,...
More »छत्तीसगढ़: बिजली घरों की राख में, राख होती ज़िंदगी
मोंगाबे हिंदी, 19 अप्रैल छत्तीसगढ़ में ताप बिजलीघरों से हर दिन निकलने वाली लाखों टन फ्लाई एश यानी राख, मुश्किल का सबब बनती जा रही है। इस राख को रखने के लिए बनाए गए अधिकांश तालाब भर चुके हैं। बंद हो चुकी खदानों को भरने, सड़क बनाने या ईंट बनाने के लिए इस राख का उपयोग पिछले कई सालों से किया जा रहा है लेकिन राख की खपत नहीं हो पा...
More »