वाशिंगटन। वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने स्वीकार किया कि आर्थिक सुधारों की रफ्तार धीमी पड़ी है और 2014 के आम चुनाव से पहले प्रमुख सुधारों को आगे बढ़ाना मुश्किल होगा। बसु ने दावा किया कि अगले आम चुनाव के बाद वर्ष 2015 से भारत विश्व की सबसे तेज रफ्तार से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक होगा। उन्होंने कहा कि यदि आम चुनाव के बाद पूर्ण...
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सुधारों को नहीं मिली तेज धार ।।सुरजीत एस भल्ला।।
यूपीए सरकार की दूसरी पारी शुरू होने के कुछ महीने बाद ही लेहमैन ब्रदर्स और एआइजी जैसे बड़े नामों को ढहने के साथ ही वैश्विक आर्थिक मंदी की शुरुआत हो गयी थी. यूरोप की बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाएं और अमेरिका आर्थिक मंदी के भंवर से आज तक नहीं निकल पाये हैं, वहीं भारत मंदी के बाद भी आठ फ़ीसदी की विकास दर बरकरार रखने में कामयाब रहा था. यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार के कहर...
More »विकास की बंद गली- भारत डोगरा
जनसत्ता 2 फरवरी, 2012 : हाल के वैश्विक संकट ने विश्व-स्तर पर लोगों को नए सिरे से आर्थिक नीतियों के बारे में सोचने के लिए प्रेरित किया है। अब आम लोग और विशेषज्ञ दोनों निजीकरण, बाजारीकरण और भूमंडलीकरण पर आधारित मॉडल की प्रासंगिकता पर सवाल उठा रहे हैं। आम लोगों की बेचैनी की अभिव्यक्ति सबसे प्रबल रूप में आक्युपाइ द वॉल स्ट्रीट आंदोलन के रूप में हुई है। दूसरी ओर, इस बार...
More »खेत में उगाई ‘नोटों की फसल’
बिलासपुर. अचानकमार टाइगर रिजर्व क्षेत्र से बैगा परिवारों को विस्थापित करने के खेल में वन विभाग ने करोड़ों का भ्रष्टाचार किया है। लोरमी के कठमुडा में 74 बैगा परिवारों को विस्थापित कर बसाया गया है। इन परिवारों के पुनर्वास के लिए 7 करोड़ 40 लाख रुपए दिए गए थे। इस राशि में से प्रत्येक परिवार को 10 लाख रुपए मिलने थे, जिसमें उन्हें घर, खेत, अन्य सुविधाएं और प्रोत्साहन राशि दी जानी...
More »खाद्य सुरक्षा की खातिर - सुभाष वर्मा
जनसत्ता 5 जनवरी, 2012: पूरी दुनिया में एक सौ पचीस करोड़ से अधिक लोग भूख से त्रस्त हैं, जिनमें से एक तिहाई लोग भारत के गरीब हैं। नवीनतम वैश्विक भूख सूचकांक में भारत का स्थान बहुत नीचे, इक्यासी देशों के बीच सड़सठवां है। इसलिए यह स्वागत-योग्य है कि भारत सरकार ने खाद्य सुरक्षा की गारंटी देने वाला विधेयक संसद में पेश किया है। इस विधेयक में ग्रामीण इलाकों की पचहत्तर फीसद और...
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