भारत के संविधान में गांव की कोई परिभाषा नहीं है. जब गांव ही नहीं है, तो ग्राम गणराज्य भी नहीं है. यह बड़ा विरोधाभास है. महात्मा गांधी गांव गणराज्य की बात करते थे. वे आजादी का असली अर्थ गांवों की समरसता, आत्मनिर्भरता और लोकतंत्र में जन भागीदारी को मानते थे. देश आजाद हुआ और गणतंत्र भारत के लिए अपना संविधान बना, लेकिन इसमें गांव की परिकल्पना शामिल नहीं हो सकी. सब ने...
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खेती हुई फायदेमंद, अंधविश्वास से उठा विश्वास तो संवरने लगा पुनगी
रांची जिला के मांडर प्रखंड की कंजिया पंचायत का एक गांव है - पुनगी. यह गांव आदिवासी बहुल है. एक समय था जब इस गांव की जमीनें सूखी और बंजर हुआ करती थीं. ग्रामीणों को किसी प्रकार की सुविधाएं नहीं थी. ग्रामीण स्वयं को असहाय महसूस करते थे. रोजी रोटी कमाने के लिए ज्यादातर लोग पलायन कर जाते थे. बाहर के राज्यों में ईंट भट्टों, भवन निर्माण या किसी असंगठित क्षेत्र...
More »तेलंगाना की तस्वीर- विनय सुल्तान
जनसत्ता 16 नवंबर, 2013 : तेलंगाना की सात दिन की यात्रा से पहले मेरे लिए तेलंगाना का मतलब था आंदोलनकारी छात्र, लाठीचार्ज, आगजनी, आत्मदाह, रवि नारायण रेड्डी और नक्सलबाड़ी आंदोलन। संसद के शीतकालीन सत्र में तेलंगाना के दस जिलों की साढ़े तीन करोड़ आबादी का मुस्तकबिल लिखा जाना है। मेरे लिए यह सबसे सुनहरा मौका था वहां के लोगों के अनुभवों और उम्मीदों को समझने का। पृथक राज्यों की मांग के पीछे...
More »महंगाई की चिंता में सिर्फ 50 बढ़ा गेहूं का एमएसपी
अनदेखी - न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने में कृषि मंत्रालय की नहीं चली विरोध - गेहूं के एमएसपी में मात्र 50 रुपये की बढ़ोतरी कर भाव 1,400 रुपये, चने के एमएसपी में 100 रुपये की बढ़ोतरी कर भाव 3,100 रुपये और सरसों के एमएसपी में भी 50 रुपये की बढ़ोतरी कर भाव 3,050 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है, इससे किसानों में...
More »गांव की सारी जमीन ग्राम सभा को दान- अपर्णा पल्लवी
ग्रामसभा को मजबूत करने और लोगों के भू-अधिकारों को संरक्षित करने के लिए महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के मेंढ़ालेखा के ग्रामीणों ने एक अनोखी मिसाल पेश की है. गांव के लोगों ने 3 सितंबर को सर्वसम्मति से अपनी खेती योग्य सारी जमीन ग्राम सभा को दान कर दी है. ऐसा उन्होंने महाराष्ट्र के एक भुला दिये गये कानून महाराष्ट्र ग्राम दान एक्ट, 1964 के तहत किया है. अब 52 परिवारों और...
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