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समस्या की अनदेखी करते समाधान-- हिमांशु

छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत ने कृषि संकट को राजनीतिक बहस के केंद्र में ला दिया है। इस चुनावी जीत के निश्चय ही कई कारक थे, लेकिन खेतिहरों की दुश्वारियां इन सबमें प्रमुख थीं। यह माना जाता है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी कृषि संकट को लेकर उदासीन रही है, बल्कि कुछ हद तक उसने इसे बढ़ाया ही है, लेकिन वास्तव में इस...

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क्या है रुपये का सही मूल्य-- अश्विनी महाजन

पिछले कुछ महीनों से रुपये में भारी अवमूल्यन हो रहा था और रुपये डाॅलर की विनिमय दर जो अप्रैल 2018 में लगभग 64 रुपये प्रति डाॅलर थी, 11 अक्तूबर, 2018 तक 74.48 रुपये प्रति डाॅलर पहुंच चुकी थी. एक ओर जहां कमजोर होते रुपये के चलते देश में चिंता का माहौल व्याप्त हो रहा था, नीति निर्माण से जुड़े हुए कई महानुभाव यह कह रहे थे कि रुपये का गिरना...

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किसानों के प्रति उदासीनता- योगेन्द्र यादव

बीसवीं सदी के किसान नेता दीनबंधु चौधरी छोटू राम ने किसान को कहा था: 'ए भोले किसान, मेरी दो बात मान लें- एक बोलना सीख और एक दुश्मन को पहचान ले'. लगता है सौ साल बाद भारत के किसान ने उनकी बात सुन ली है. आज देशभर से 200 से अधिक किसान संगठन 'किसान मुक्ति मार्च' लेकर दिल्ली पहुंच रहे हैं. इस मार्च के जरिये किसान बोलना सीख रहे हैं....

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धरती पर गर्मी बढने से 15 करोड़ लोगों पर असर : रिपोर्ट

जलवायु परिवर्तन का खतरा बढ़ता जा रहा है। लांसेट जर्नल की ताजा रिपोर्ट के अनुसार सन 2000 से 2017 के बीच में विश्व में करीब 15.70 करोड़ अतिरिक्त लोग भयंकर गर्मी के कारण जोखिम के दायरे में आ गए। यह आंकड़ा 2016 की तुलना में भी 1.8 करोड़ ज्यादा है। बढ़ती गर्मी से इन लोगों के स्वास्थ्य, रहन-सहन एवं कामकाज के लिए गंभीर चुनौतियां पैदा हुई। रिपोर्ट में कहा गया...

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किसानों का मार्च (पार्ट-2): जमीन पर बेकार हैं कृषि नीतियां, मौजूदा सिस्टम में बड़े बदलाव की जरूरत

कृषि-संकट कोई अचानक आ धमका हो ऐसी बात नहीं. जैसा कि नीति आयोग के एक रिपोर्ट में कहा गया है, समस्या की शुरुआत 1991-92 से होती है- इससे पहले अर्थव्यवस्था के खेतिहर और गैर-खेतिहर क्षेत्र समान गति से बढ़ रहे थे. साल 1991-92 के बाद गैर-खेतिहर क्षेत्र ने ऊंची वृद्धि-दर की राह पकड़ी. यह आर्थिक उदारीकरण का दौर था. गैर-खेतिहर क्षेत्र की वृद्धि दर 8 फीसदी के पार पहुंच रही...

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