विशेष आर्थिक क्षेत्र यानि सेज के प्रति डेवलपर कंपनियों और निर्यातकों की दिलचस्पी घटने के बाद पिछले मार्च में केंद्र सरकार ने इनके आकार में छूट देने की पहल की। इसके अलावा जमीन के उपयोग में ज्यादा आजादी और ऐसे प्रोजेक्ट से बाहर निकलने के लिए आसान प्रक्रिया बनाई गई थी। लेकिन सरकार ने कोई टैक्स छूट देने से साफ इंकार...
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आदिवासी विमर्श का दायरा- अनिल चमड़िया
जनसत्ता 25 नवंबर, 2013 : बढ़ता कृषक असंतोष, छिटपुट विस्फोटों से प्रकट हो रहा है- भू-स्वामियों के बढ़ते शोषण और दमन के विरोध में सशस्त्र प्रतिरोध की तरफ बढ़ता हुआ यह घटनाचक्र पूरे देश के पैमाने पर, विशेषकर आदिवासियों की तरफ फैलता जा रहा है।’ क्या शीर्षक (आदिवासी: शोषितों में सबसे बुरी स्थिति) समेत इन पंक्तियों के बारे में यह ठीक-ठीक अनुमान लगाया जा सकता है कि ये कब लिखी गई होंगी?...
More »झारखंड की अखंड लूट-विनोद कुमार
जनसत्ता 15 नवंबर, 2013 : तेरह साल पहले झारखंड राज्य का गठन हुआ था। झारखंड आंदोलन की काट में वनांचल आंदोलन खड़ा करने वाली भाजपा ने झारखंड राज्य का गठन क्यों किया, इसको लेकर अलग-अलग धारणाएं हैं। कुछ लोगों का मानना है कि अविभाजित बिहार की सत्ता पर काबिज होने की कोशिशों में विफल होने के बाद भाजपा ने अपने प्रभाव वाले इलाके की सत्ता पर काबिज होने की मंशा...
More »खनन से किसका हित, मिल कर सोचें- ।।किशन पटनायक।।
बिक्री लायक पदार्थो को ‘पण्य’(माल) कहा जाता है और उनके संग्रह को ‘संपत्ति’. आधुनिक समाज में संपत्ति को मूल्यों (रुपयों) में आंका जाता है. मैं अगर करोड़पति हूं, तो मेरी संपत्ति का मूल्य करोड़ों रुपयों में है. दुनिया में जितनी भी संपत्ति है, उनके मूल में हैं प्राकृतिक संसाधन. मेहनत, बुद्धि और मशीनों के द्वारा प्राकृतिक संसाधनों से विभिन्न पण्य वस्तुओं को बनाया जाता है. मशीनें भी खनिज धातु यानी प्राकृतिक...
More »छत्तीसगढ़ का जितना क्षेत्रफल नहीं उससे ज्यादा में लगाए पौधे- मनोज व्यास
रायपुर. महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत राज्य में बीते पांच साल में इतने पौधे रोपे गए कि एक इंच भी जगह खाली नहीं बची है। दावा किया जा रहा है कि 13 लाख वर्ग किलोमीटर के रकबे में पौधे लगाए गए हैं जबकि छत्तीसगढ़ का कुल क्षेत्रफल ही एक लाख पैंतीस हजार वर्ग किलोमीटर है। इसमें भी 44 फीसदी हिस्से में पहले से जंगल हैं। कागजों में की गई...
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