नोटबंदी के फैसले को भोजन के अधिकार और जीवन के अधिकार पर बड़ा हमला करार देते हुए रोजी-रोटी अधिकार अभियान ने मांग की है कि नकदी की भारी किल्लत के बीच लोगों को हो रही कठिनाइयों की क्षतिपूर्ति के लिए सरकार विधवा, बुजुर्ग और विकलांगों को मिलने वाले सामाजिक सुरक्षा पेंशन में अपना हिस्सा 200 रुपये से बढ़ाकर 1000 रुपया करे.(देखें नीचे दी गई लिंक) अरुणा रॉय, निखिल डे, कविता श्रीवास्तव, एनी...
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कैशलेस अर्थव्यवस्था की मरीचिका--- पी चिदंबरम
जब-तब कोई नया शब्द या पद बातचीत में चल पड़ता है। आठ नवंबर 2016 को विमुद्रीकरण शब्द का चलन शुरू हुआ। ऐसा चित्रित किया गया जैसे जंगी घोड़े पर सवार कोई सेनापति काला धन, भ्रष्टाचार और नकली मुद्रा रूपी राक्षसों का वध करने निकला है।छह हफ्तों बाद भी काले धन के दैत्य का कुछ नहीं बिगड़ा है। टैक्स चोरी करने वाले नोटबंदी से अविचलित जान पड़ते हैं; वे नए नोटों...
More »आज तो आजिज हैं सब गरीब! - मृण्ााल पांडे
दु:ख, असहायता और राज-समाज के उत्पीड़न से भारतीय गरीबों का इतनी सदियों से रिश्ता रहा है कि वे अक्सर उसे खामोशी से सहते रहते हैं। पर हमारे यहां जनता की अनसुनी मूक व्यथा को स्वर देने वाले जनकवियों की वाल्मीकि से लेकर बाबा नागार्जुन तक एक लंबी परंपरा भी है, जिसमें नज़ीर अकबराबादी भी आते हैं। मध्यकाल में जब दिल्ली की बादशाहत उजड़ रही थी और जनता जाट, रुहेले, मराठा...
More »विकास की परिभाषा में बच्चे कहां!-- अनुज लुगुन
हमारा समाज एक ऐसी दिशा की ओर बेलगाम अग्रसर होता जा रहा है, जहां सब कुछ या तो बहुसंख्यक के लिए ही हो रहा है, या आवाज उठा सकनेवालों के लिए ही हिस्सेदारी बच रही है. जो मूक हैं, या मासूम हैं, उनके लिए कुछ भी नहीं बच रहा है. आज प्रकृति-जीव और बच्चे सामूहिक संहार के शिकार हो रहे हैं, क्योंकि वे अपनी भाषा मनुष्यों को समझा नहीं सकते....
More »काले धन की जंग में फंस चुके जनधन खाते - अवधेश कुमार
नोटबंदी के बाद जनधन खाता काफी चर्चा में आया है। जो आंकड़े आए हैं, वे चकराने वाले हैं। नौ नवंबर तक इन खातों में जमाराशि थी- 45 हजार, 627 करोड, जो 30 नवंबर को 74 हजार, 322 करोड़ हो गई। जिस खाते में एक पैसा नहीं था या चंद रुपये थे, ऐसे अनेक खातों में 49 हजार रुपये जमा हो गए। 50 हजार या उससे ऊपर जमा करने पर पैन...
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