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रुके सियासी चंदे का गोरखधंधा - भवदीप कांग

रु पूर्णिमा के मौके पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक गुरुदक्षिणा स्वरूप कुछ राशि अपने इस संगठन को भेंट करते हैं। यह राशि (जो कुछ सिक्के भी हो सकते हैं या हजारों रुपए के नोट भी) एक सादे लिफाफे में दी जाती है, जो संघ कार्यालय के संचालन के लिए होती है। इसी से प्रचारकों का खर्चा भी निकलता है।   अब मोदीजी के 'कैशलेस भारतमें क्या ऐसी दान राशि सिर्फ चेक...

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छोटे उद्योगों पर प्रहार --- डॉ भरत झुनझुनवाला

सरकार ने नोटबंदी को कालेधन के सफाये के अस्त्र के रूप में पेश किया है, परंतु लगभग पूरा कालाधन बैंकों में जमा होकर ‘सफेद' हो गया है. न सिर्फ कालेधन को नष्ट करने का उद्देश्य पूरी तरह असफल रहा है, बल्कि कालाधन पुनः नये नोटों में पैदा हो चुका है. करोड़ों रुपये के नये नोट जब्त हो रहे हैं. नोटबंदी का असल प्रहार छोटे उद्योगों पर हुआ है. तमाम उद्योग...

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नोटबंदी के दौर में बोलेरो शादी-- विभूति नारायण राव

पिछले चालीस दिनों में नोटबंदी ने देश की तरह मुझे भी तरह-तरह के अनुभव दिए हैं। देश दो खेमों मे बंटा दिख रहा है। एक तरफ देशभक्त हैं, जिनकी बांछें खिली हुई हैं और जो बता रहे हैं कि बस देखते रहिए, देश से काला धन, जाली नोट और आतंकवाद खत्म होने ही वाले हैं। यह अलग बात है कि समय बीतने के साथ ही उनकी मुस्कान धीरे-धीरे कमजोर पड़ती...

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विपक्ष का अगंभीर रवैया--- आकार पटेल

इन दिनों हम देश में एक अजीब राजनीतिक स्थिति से गुजर रहे हैं. जहां एक ओर अपने ढाई वर्ष पूरे कर चुकी केंद्र सरकार पहली बार मुश्किल में फंसी नजर आ रही है, वहीं दूसरी ओर लोगों की भावनाओं को सामने लाने या फिर इस अवसर का लाभ उठाने के लिए जो क्षमता विपक्ष में होनी चाहिए, उसमें कमी दिखायी दे रही है. बेशक विमुद्रीकरण को लेकर बहस चल रही...

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आज तो आजिज हैं सब गरीब! - मृण्‍ााल पांडे

दु:ख, असहायता और राज-समाज के उत्पीड़न से भारतीय गरीबों का इतनी सदियों से रिश्ता रहा है कि वे अक्सर उसे खामोशी से सहते रहते हैं। पर हमारे यहां जनता की अनसुनी मूक व्यथा को स्वर देने वाले जनकवियों की वाल्मीकि से लेकर बाबा नागार्जुन तक एक लंबी परंपरा भी है, जिसमें नज़ीर अकबराबादी भी आते हैं। मध्यकाल में जब दिल्ली की बादशाहत उजड़ रही थी और जनता जाट, रुहेले, मराठा...

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