भारत में आर्थिक सुधारों को लागू किये जाने के 22 वर्ष बाद भी इस पर मंथन का दौर जारी है. पिछले दो दशकों के अनुभव हमें बता रहे हैं कि आर्थिक उदारीकरण के पैरोकारों ने जिस स्वर्णिम भविष्य का हमसे वादा किया था, वह सच्चाई से दूर, छल से भरा हुआ और भ्रामक था. इन वर्षों में आर्थिक उदारीकरण विकास के चमचमाते आंकड़ों पर सवार होकर हम तक जरूर आया,...
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विलायती ठिकानों में पैसा लगाने वालों में छह सौ भारतीय
नई दिल्ली। जानकारी के अनुसार विदेशों में काला धन छिपाने वालों में नेताओं के अलावा बड़े धन्नासेठ और कर अपवंचक शामिल हैं। विदेशी ठिकानों-बैंकों में निवेश और संदिग्ध लेनदेन से जुड़े अपने तरह के सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय खुलासे में खोजी अखबारनवीसों के एक समूह ने इस बात की अहम जानकारी जुटाई है कि भारत समेत दुनिया की एक लाख से ज्यादा कंपनियों, न्यासों, और निजी लोगों ने 170 देशों में...
More »जरूरी दवाएं महंगी कर देगी यूरोप से संधि
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। सस्ती दवाओं की खुशी जल्द ही काफूर हो सकती है। केंद्र सरकार यूरोपीय समुदाय के साथ गुपचुप रूप से जो मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) करने जा रही है उसके बाद भारत सख्त पेटेंट शर्तो में बंध सकता है यानी दवाएं महंगी हो सकती हैं। समझौता गुपचुप इसलिए है क्योंकि इसके प्रावधान सार्वजनिक नहीं किए गए हैं। आमतौर पर मुक्त व्यापार समझौतों का मसौदा संबंधित पक्षों की...
More »क्या विरोध का ढंग बदल सकता है- गिरिराज किशोर
जनसत्ता 5 मार्च, 2013: इक्कीस-बाईस फरवरी का भारत-बंद लगभग सफल हुआ। उसके लिए श्रमिक संगठनों को बधाई। लेकिन इस महाबंद ने मन में कई सवाल उठा दिए। बंद होते रहते हैं। दो मुख्य तर्क इनके पीछे हैं। एक, मजदूरों या कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा, और दूसरा, अपने अधिकारों की शांतिपूर्ण और सामूहिक अभिव्यक्ति। दोनों बातें अपनी जगह सही हैं। मजदूर के अधिकार का संरक्षण होना जरूरी है। लेकिन असंगठित मजदूर...
More »सत्तर जैसा हाल, इक्यानबे जैसी आफत
नई दिल्ली, [अंशुमान तिवारी]। वित्त मंत्री के धमकाने पर विकास दर का आंकड़ा भले ही बदल जाए, लेकिन हकीकत बदलने वाली नहीं है। भारत के आर्थिक विकास की गति व्यावहारिक रूप से अब साठ-सत्तर के दशक वाली स्थिति में पहुंच गई है। विकास दर में से अगर विदेश व्यापार और विदेशी पूंजी को हटा दिया जाए तो देशी अर्थव्यवस्था पांच फीसद भी नहीं, बल्कि केवल 3 से 3.5 फीसद की दर से...
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