-आउटलुक, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) और नेशनल सेंटर फॉर डिजीज इंफॉर्मेटिक्स एंड रिसर्च (एनसीडीआईआर), बेंगलुरु ने बुधवार को नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम रिपोर्ट 2020 जारी की। इस रिपोर्ट का अनुमान है कि साल 2020 में देश में कैंसर के मामले 13.9 लाख होंगे और वर्तमान के आधार पर 2025 तक ये बढ़कर 15.7 लाख होने की संभावना है। आईसीएमआर-एनसीडीआईआर राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम में 2025 तक देश में कैंसर के...
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अर्थात्ः आने वाला कोई तूफान है!
-इंडिया टूडे, प्रत्येक शांति शुभ नहीं होती! जैसे तूफान से पहले की शांति. बैंक की बोर्ड मीटिंग से निकलते हुए पुराने बैंकर ने यह बात कही और फिर ऑफिस के गलियारों में गुम हो गया. उधर, बैंक के आला अफसर ताजा सुर्खियों के मतलब समझने में जुटे थे. ■ नीति आयोग ने तीन बैंकों (पंजाब ऐंड सिंध, यूको, बैंक ऑफ महाराष्ट्र) का तत्काल निजीकरण करने को कहा है, जिन्हें कोई बड़ा सरकारी...
More »क्या भारत में भी मौजूद है 10 गुना ज़्यादा संक्रामक कोरोना वायरस?
-बीबीसी, मलेशिया में एक नए तरह का कोरोना वायरस यानी वायरस का स्ट्रेन मिला है, जिसका नाम है D614G. मलेशिया की सरकार ने चेतावनी दी है कि इस प्रकार का कोरोना वायरस बहुत तेज़ी से फैल सकता है. D614G दरअसल कोरोना वायरस के म्यूटेशन यानी जीन में बदलाव होने से ही बना है. मलेशिया के स्वास्थ्य विभाग के महानिदेशक डॉ नूर हिशाम ने कहा कि D614G वायरस दुनिया भर में जाने-पहचाने कोरोना...
More »कोविड-19 संकट के कारण भारत में 41 लाख युवाओं का रोज़गार छिना: रिपोर्ट
-द वायर, देश में कोविड-19 महामारी के कारण 41 लाख युवाओं को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है. इसमें निर्माण और कृषि क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारी सर्वाधिक प्रभावित हुए. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और एशियाई विकास बैंक (एडीबी) की संयुक्त रिपोर्ट में यह कहा गया है. ‘एशिया और प्रशांत क्षेत्र में कोविड-19 युवा रोजगार संकट से निपटना’ शीर्षक से आईएलओ-एडीबी की मंगलवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया, ‘एक अनुमान के...
More »मोदी सरकार और रिजर्व बैंक 2008 के संकट में की गई भूलों से सबक ले सकते हैं, मगर समय हाथ से निकल रहा है
-द प्रिंट, लॉकडाउन में पांचवां महीना बीत रहा है मगर कोविड-19 की महामारी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है और अर्थव्यवस्था निरंतर नीचे फिसलती जा रही है. आधुनिक भारत ने ऐसी महामारी पहले नहीं झेली थी, लेकिन इसका आर्थिक प्रभाव जाना-पहचाना है— सुस्त आर्थिक वृद्धि, ऊंची मुद्रास्फीति, और बेहिसाब बुरे कर्जों का घातक मेल. 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट (जीएफसी) के बाद के दौर में भी यही स्थिति थी....
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