शैबाल गुप्ता जाने-माने अर्थशास्त्री और एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (आद्री) के सदस्य सचिव हैं. पिछले दिनों इलाहाबाद स्थित गोविंद बल्लभ पंत सोशल साइंस इंस्टीट्यूट ने उन्हें 29वें ‘गोविंद बल्लभ पंत मेमोरियल लेक्चर' में व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया था. इस अवसर पर बोलने के लिए उन्होंने जो विषय चुना, उसका शीर्षक था- ‘आइडिया ऑफ द हिंदी हार्टलैंड'. हिंदी में इसे ‘हिंदी प्रदेश की धारणा' कहा जा सकता है. इस...
More »SEARCH RESULT
शिक्षा को नवोन्मेषी बनाने की चुनौती- गिरीश्वर मिश्र
आधुनिक भारत में विश्वविद्यालय स्तर पर शिक्षा का आरंभ हुए एक शताब्दी से अधिक का समय बीत चुका है। स्वतंत्रता मिलने के बाद इसे प्रोत्साहन मिला और धीरे-धीरे सरकार द्वारा विश्वविद्यालय, कॉलेज और विभिन्न प्रकार के ‘प्रोफेशनल' शिक्षा देने वाले तकनीकी, मेडिकल और प्रबंधन के संस्थान खुलते चले गए। शुरू में ब्रिटेन और बाद में अमेरिका से उधार लिए गए एक बंधे-बधाए सांचे में शिक्षा का विस्तार होता गया। उधारी...
More »ओझल आदिवासी समाज- विनोद कुमार
जनसत्ता 26 अगस्त, 2014 : आदिवासी समाज के बारे में इधर हमारी दृष्टि बदली है। बावजूद इसके आदिवासी बहुल इलाकों के बाहर आदिवासी समाज के बारे में अब भी एक कौतूहल का भाव रहता है। इस परिप्रेक्ष्य में यह जानना दिलचस्प होगा कि गैर-आदिवासी समाज आज भी आदिवासी समाज को किस रूप में देखता है। राजनेताओं की नजर में आदिवासी समाज की अहमियत क्या है, इसे हम कुछ उदाहरणों से...
More »छोटे किसानों के हित में- एम के वेणु
अधिकांश विदेशी राजनयिकों और आर्थिक विशेषज्ञों की सोच है कि व्यापार सुगमता समझौता (टीएफए) पर तब तक हस्ताक्षर न करने की बात कहकर, जब तक कि खाद्य सुरक्षा के संदर्भ में एक अरब भारतीयों की चिंता दूर नहीं कर दी जाती, भाजपा ने अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया है। अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी की भारत यात्रा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दिया बयान स्थितियां स्पष्ट...
More »यूपी में समाजवादी राजनीति का पतन - एमजे अकबर
जब आप आग से खेलते हैं तो निश्चित ही एक समय ऐसा आता है, जब आग आपके साथ खेलने लग जाती है। मुलायम सिंह यादव ने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत डॉ. राम मनोहर लोहिया के शिष्य के तौर पर की थी, जिन्होंने जाति को भारतीय समाज के महत्वपूर्ण वर्गों के आर्थिक सशक्तीकरण के लिए जोड़ने वाली आंतरिक व्यवस्था के तौर पर स्वीकार किया था। यदि हम इसे आर्थिक और...
More »