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आदिवासियों के सवालों पर चुप्पी क्यों?

-डाउन टू अर्थ, भारत जैसे महादेश में आज आदिवासियत पर विमर्श अपरिहार्य है। वास्तव में यह केवल अस्मिता अथवा अधिकारों का मसला मात्र नहीं है - आदिवासियत की प्रासंगिकता उन तमाम संदर्भों से भी है, जो आदिवासी समाज के संपन्नता से विपन्नता तक के संक्षिप्त इतिहास में आज कहीं जाहिर-अजाहिर तौर पर दर्ज हैं। सरकारों के लिये आदिवासियत का पूर्ण-अपूर्ण अर्थ आदिवासी समाज का 'संवैधानिक दर्जा' है। एक ऐसा संवैधानिक दर्जा,...

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कोरोना के दौर में घुमंतू समुदाय

-डाउन टू अर्थ, कोरोनावायरस के फैलाव को कम करने के लिए लगाए गए लॉकडाउन ने पहले से बदहाल घुमंतू समुदाय की कमर तोड़कर रख दी है। पशुधन पर आश्रित ये समुदाय अब अपने पशुओं को खिलाने की स्थिति में नहीं है। राइका रैबारी समुदाय ने अपने ऊंटों को खुला छोड़ दिया है। भेड़-बकरी पालक भी हताश हैं। मार्च और अप्रैल में लगे लॉकडाउन ने इन घुमंतुओं को एक स्थान रुकने को...

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प्रेमचंद 140 : जीवन के प्रति दहकती आस्था

-सत्यहिंदी, प्रेमचंद को लेकर साहित्यवालों में कई बार दुविधा देखी जाती है। उनका साहित्य प्रासंगिक तो है लेकिन क्यों? क्या ‘गोदान’ इसलिए प्रासंगिक है कि भारत में अब तक किसान आत्महत्या कर रहे हैं? या दलितों पर अत्याचार अभी भी जारी है, इसलिए ‘सद्गति’ और ‘ठाकुर का कुआँ’ प्रासंगिक है? क्या ‘रंगभूमि’ इसलिए पढ़ने योग्य बनी हुई है कि किसानों की ज़मीन कारखाने बनाने के लिए या ‘विकास’ के लिए अभी...

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2019 में मारे गए रिकॉर्ड 212 पर्यावरण योद्धा, भारत में गई 6 की जान

-डाउन टू अर्थ, पिछले साल पर्यावरण, जंगलों और अपनी जमीन को बचाने में 212 लोगों की जान गई थी| भारत की बात करें तो पिछले साल यहां 6 पर्यावरण कार्यकर्ताओं को मार दिया गया था। यह जानकारी आज ग्लोबल विटनेस नामक संस्था द्वारा जारी रिपोर्ट में सामने आई है।  रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण अमेरिका महाद्वीप में सबसे ज्यादा हत्याओं के मामले सामने आए हैं जहां लगभग दो-तिहाई से अधिक हत्याएं हुईं हैं।...

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हिंदी पट्टी का रक्त-चरित्र; पिछले चार दशकों में ऐसे पनपी बाहुबली संस्कृति

-आउटलुक, “हिंदी प्रदेशों और खासकर सियासी तौर पर सबसे अहम उत्तर प्रदेश के सामाजिक-राजनैतिक तानेबाने में पिरोयी गैंगस्टर और बाहुबली संस्कृति पिछले चार दशकों में राजनीति के तौर-तरीकों का नतीजा” यकीनन अपने रंग-ढंग और सामाजिक परिस्थितियों में पुराने दौर के बागी डकैतों और आज के गैंगस्टर या डॉन वगैरह का चाल, चरित्र सब कुछ एकदम अलग है। लेकिन दोनों की जुबान पर आज भी वही गर्व से फबता है, जो सबसे लोकप्रिय...

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