धनबाद. जिले में एक-दो नहीं लगभग पचास हजार ऐसे लोग हैं जिनके पेट की आग मालगाड़ियों से बुझती है। कोयले से लदी मालगाड़ियां से कोयला चोरी कर बेचना इनका मुख्य पेशा है। गंदा है,अवैध है, पर यही इनका धंधा इनकी रोजरोटी का माध्यम है। इनके लिए मनरेगा कोई मायने नहीं रखता। इनका साफ कहना है कि आठ घंटे काम करने पर के बाद भी न्यूनतम मजदूरी से मनरेगा में अधिक नहीं मिलता,...
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मनरेगा - पांच साल दुनिया की सबसे बड़ी रोजगार गारंटी योजना के
बहुत थोड़ी होती है पांच साल की अवधि फिर भी नरेगा की उपलब्धियां आवाक कर रही हैं। देश के सर्वाधिक गरीब में शुमार लोगों में से तकरीबन दस करोड़ ने बैंक या फिर पोस्ट-ऑफिस में बैंक अकाऊंट खोले हैं, लोग अपना अधिकार समझकर काम मांग रहे हैं, हजारों गांवों में कुएं-तालाब और ऐसे ही सामुदायिक इस्तेमाल के कई संसाधन तैयार हो रहे हैं, औरत हो या मर्द- दोनों को बराबर के काम के लिए बराबर की...
More »साइकिल चलाते-चलाते ब्रांड बनी किसान चाची
मुजफ्फरपुर. 55 साल की राजकुमारी हर रोज 30-40 किलोमीटर का सफर साइकिल से तय करती हैं। पिछले 20 सालों से हर दिन साइकिल पर सवार होकर वह गांवों की ओर निकल जाती हैं जहां औरतों को खेती के गुर सिखाती हैं। आसपास के कई जिले उन्हें ‘किसान चाची’ के नाम से जानते हैं जहां उनका अचार, मुरब्बा, सॉस जैसे खाद्य वस्तुओं को बनाने का प्रशिक्षण कार्यक्रम चलता रहता है। अपने गांव आनंदपुर में...
More »बीच बहस में न्यूनतम मजदूरी
हालांकि केंद्र सरकार ने मनरेगा के अन्तर्गत दी जाने वाले मजदूरी को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जोड़ने की बात मान ली है, फिर भी वह इस मामले में संविधानप्रदत्त न्यूनतम मजदूरी देने में संकोच कर रही है जबकि देश के कई सूबों में अब भी मनरेगा के अन्तर्गत दी जाने वाली मजदूरी न्यूतम मजदूरी से कम है। सरकार का तर्क है कि न्यूनतम मजदूरी दी गई तो बढ़ा हुआ वित्तीय...
More »आत्मसम्मान का मजबूत होता जज्बा-- योगेन्द्र यादव
-सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन द्वारा देश की राजधानी में आयोजित सम्मेलन अपने आप में एक ऐतिहासिक घड़ी थी. -सदियों से मैला उठाने वाला समाज अब टोकरी नहीं आवाज उठाना चाहता है, हाथ में झाड़ू नहीं किताब लेना चाहता है. -सरकार के झूठे वादों पर उम्मीद बांधने की बजाय अब इस समाज ने खुद मैलाप्रथा को खत्म करने की ठान ली है. आज भी कई लाख लोग अपने सर पर मैला उठाने को अभिशप्त हैं....
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