अकेले नहीं आता अकाल. पानी, प्रकृति और समाज के देशज चिंतक अनुपम मिश्र के लेख का यह शीर्षक अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है. कुदरत सूखा देती है, अकाल नहीं. हर चौथे-पांचवें साल हमारे देश में बारिश की कमी होती है. लेकिन जरूरी नहीं कि इससे अन्न की कमी हो, पीने के पानी का संकट हो, इंसानों और मवेशियों की जान पर बन आये, खेती-किसानी से जुड़े हर...
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मोदी के आदर्श गांव को संवार रहे बाहरी, पंचायत अनजान!
भोपाल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र बनारस के करीब जिस जयापुर गांव को गोद लिया है, उसमें विकास कार्यों की रफ्तार तूफानी है,लेकिन ये काम कौन करा रहा है और कैसे पूरे हो रहे हैं इसकी कोई जानकारी गांव की प्रधान दुर्गावती पटेल के पास नहीं है। सांसद आदर्श ग्राम योजना की राष्ट्रीय कार्यशाला में हिस्सा लेने भोपाल आईं दुर्गावती कहती हैं एक साल पहले गांव बदतर हालत में...
More »ब्याज दर घटाए जाने की संभावना पर कमजोर मानसून का साया
मुंबई। अगले हफ्ते रिजर्व बैंक नीतिगत ब्याज दरें चौथाई फीसदी घटाकर चार साल के निचले स्तर पर लाएगा, ऐसी संभावना तो है, लेकिन महंगाई इस पर पानी फेर सकती है। आरबीआई के अधिकारियों ने बुधवार को कहा कि कीमतों में एक बार फिर वृद्घि शुरू होने की चिंता ब्याज दरें घटाने के राजनीतिक दबाव पर हावी है। इस लिहाज से आगामी महीनों में तेजी से कर्ज सस्ता होने की राह आसान...
More »सूखे का साया
आखिरकार भारतीय मौसम विभाग की भविष्यवाणी सही निकली। उसने इस साल मानसून के कमजोर रहने का अंदेशा जताया था। तब वित्तमंत्री ने कहा था कि घबराने की बात नहीं है, हो सकता है मानसून संबंधी पूर्वानुमान गलत निकले। दरअसल, वित्तमंत्री को बाजार की चिंता सता रही थी और वे निवेशकों को आश्वस्त करना चाहते थे कि सब कुछ ठीकठाक रहेगा। पर अब मौसम संबंधी पूर्वानुमान पहले से कहीं अधिक वैज्ञानिक...
More »बंजर होते हिमालय की सुध- अनिल प्रकाश जोशी
हिमालय क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में आई त्रासदियां कई मौंजू सवाल खड़े कर रही हैं। उत्तराखंड का ही उदाहरण लीजिए। इस राज्य ने पिछले चार वर्षों में बहुत कुछ झेला है। करोड़ों रुपये की संपत्तियों का नुकसान और हजारों जानों का खो जाना क्या कोई सामान्य मुद्दा है? इन घटनाओं ने देश-दुनिया को झकझोरा। मगर जल्दी ही बिना दवा के ही घाव भर गए और फिर नए सिरे से...
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