जनसत्ता 27 दिसंबर, 2011: कभी-कभी ऐसा होता है कि शरीर की कुछ कोशिकाएं विद्रोह कर देती हैं। उनका पुनरुत्पादन इतनी तेजी से होने लगता है कि जिस शरीर का वे हिस्सा होती हैं, उसी का विनाश करने लगती हैं। इसे कैंसर कहा जाता है। कैंसर जब दिमाग में फैलता है तो वह पूरे शरीर को प्रभावित करता है। इसी तरह, कभी-कभी ऐसा भी होता है कि समाज का एक हिस्सा...
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भले ही बन जाए कानून, फिर भी दो करोड़ को नहीं मिलेगी रोटी!
भोपाल. लोकसभा में बीते सप्ताह पेश राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक गरीबों के लिए रोटी सुनिश्चित कर सकेगा, इसमें संदेह है। इसके पारित होने और कानून बनने के बाद भी प्रदेश के कम से कम 28 फीसदी जरूरतमंद लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पाएगा। यानी करीब दो करोड़ लोगों को रोटी नसीब नहीं हो पाएगी। गरीबी के आंकड़ों के लिए एन्साइक्लोपीडिया मानी जाने वाली अर्जुन सेन गुप्ता समिति की रिपोर्ट के मुताबिक देश...
More »स्कूलों को शिक्षा अधिकार कानून की परवाह नहीं
नई दिल्ली। स्कूलों में नर्सरी दाखिले को लेकर दिल्ली सरकार की ओर से लागू मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा अधिकार कानून (आरटीई एक्ट) का उल्लंघन किया जा रहा है। एक्ट के तहत साफ है कि आयु संबंधी दस्तावेजों के मामले में स्कूलों को माता-पिता या संरक्षक की आयु घोषणा ही मान्य होगी, लेकिन इसके विपरीत स्कूलों ने नर्सरी, प्री-प्राइमरी व पहली कक्षा के दाखिलों के लिए नगर निगम की ओर से जारी आयु...
More »तुम केवल एक छवि हो?- गोपालकृष्ण गांधी
‘तुमि की केबोलि छोबि?’ (तुम क्या केवल एक छवि हो?) कविगुरु रबींद्रनाथ टैगोर अपनी एक रचना में अपने सामने रखी एक छवि से पूछते हैं। उस प्रश्न का संदर्भ अपने में कुछ है। प्रश्न का उत्तर भी, जो कि वे स्वयं देते हैं, अपने में मौलिक है। दो हजार ग्यारह के अपने इस अंतिम स्तंभ में वही प्रश्न मैं, अदना-सा एक इंसान, भारत माता की छवि से पूछना चाहता हूं...
More »कब खत्म होगी महिलाओं पर जुल्मों की दास्तां
जम्मू। महिलाओ पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए वर्ष 2010 के विधानसभा बजट सत्र के दौरान पारित होने वाला बिल एक साल बाद भी एक्ट नहीं बन पाया है। हालांकि दो महीने पहले विभाग ने नियम बना दिए हैं। लेकिन सरकार द्वारा अभी तक एक्ट को लागू करने संबंधी अधिसूचना जारी नहीं की गई। एक्ट लागू होने से सोशल वेल्फेयर विभाग हर जिले में एक प्रोटेक्शन अफसर की नियुक्ति...
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