जातियों का उद्भव राजनीति के लिए नहीं हुआ था। मगर आज जातियां भारतीय राजनीति को आधार दे रही हैं। कहते हैं कि जातियों का उद्भव व्यवसायों व पेशों से जुड़ा था। पहले पेशे से ही जातियां निर्धारित होती थीं। फिर ये ‘जन्मना' अर्थात जन्म से जुड़ गईं। आज के दौर में, जब जातियों को ‘पहचान ' से जोड़कर उनका आक्रामक राजनीतिक इस्तेमाल किया जाने लगा है, तब इनकी एक नई...
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सूखे में हो रही बारिश-- कुमार प्रशांत
किसान खुशहाल हो गये! अब किसान नेता अपने-अपने अांदोलन वापस ले लें. सूखे के अांकड़ों की ऐसी बारिश हुई है कि धरती अाप्लावित हो गयी है. प्रधानमंत्री ने कबीर-भूमि पर जाकर शताब्दियों का ऐसा कॉकटेल बनाया कि इतिहास अौर इतिहासकार सभी चारों खाने चित हो गये. उन्होंने ‘मेरे किसान भाइयों' की तरफ नजर घुमायी अौर एक ऐसी लकीर खींच दी कि किसान इधर अौर समस्याएं उधर रह गयीं. किसानों को...
More »तेल आयात व भारत-ईरान संबंध-- पुष्पेश पंत
अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने पूर्व राष्ट्रपति ओबामा द्वारा ईरान के संपन्न परमाणु समझौते को न केवल खारिज कर दिया है, बल्कि ईरान के विरुद्ध कड़े आर्थिक प्रतिबंध भी लागू करने की घोषणा की है. जो बात और भी चिंताजनक है, वह यह कि ट्रंप ने अपने सभी संधि मित्रों और अन्य देशों को यह चेतावनी दी है कि यदि उन्होंने ईरान के साथ अपने आर्थिक संबंधों को यथावत...
More »पाठ्यपुस्तक में इमरजेंसी अध्याय-- प्रो. योगेन्द्र यादव
इमरजेंसी पर केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के बयान ने मुझे एक भूले-बिसरे किस्से की याद दिला दी. जब भी इस किस्से को याद करता हूं तो विस्मय होता है, गर्व भी होता है. जयपुर में भाजपा द्वारा आपातकाल को काले दिवस की तरह मनानेवाले कार्यक्रम में केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने कहा, 'हमने तय किया है कि हम पाठ्यक्रम में बदलाव कर आपातकाल की सत्यता के बारे में विद्यार्थियों को भी...
More »अंतहीन अत्याचार का वह काला दौर - ए. सूर्यप्रकाश
जून का महीना झुलसाती गर्मी के साथ इतिहास की कुछ दर्दनाक यादों को भी दोहराता है। 1975 में 25 जून को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश पर निरंकुश आपातकाल थोपा था। इसके साथ ही जीवंत लोकतंत्र पर तानाशाही हावी हो गई थी। इस तानाशाही ने न केवल नागरिकों के मूल अधिकार निलंबित किए, बल्कि उन्हें जीवन के अधिकार से भी वंचित किया। यदि हम अपने लोकतांत्रिक जीवन को सुरक्षित रखना...
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