समाज में साहित्य के लिए जगह लगातार कम होती जा रही है। प्राय: ऐसा प्रतीत होता है कि समाज को साहित्य की कोई जरूरत नहीं है। समाज की प्राथमिकता से साहित्य का गायब होना चिंता से अधिक चिंतन का विषय है। साहित्य के नए पाठक बन नहीं रहे हैं और जो पुराने हैं वे धीरे-धीरे विदा हो रहे हैं। हम एक तरह से क्रमश: साहित्य विहीन समाज की ओर बढ़...
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वैकल्पिक ईंधन से आर्थिक संप्रभुता-- शशांक द्विवेदी
एक समय था जब भारतीय पेट्रोलियम मंत्री को तेल व गैस उत्पादन करने वाले बड़े देशों के संबंधित मंत्रियों से मिलने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। लेकिन पिछले कुछ सालों में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के बाद और भारत की तेज आर्थिक विकास दर को देखते हुए ये तमाम देश अब भारतीय पेट्रोलियम मंत्री से मिलने का कोई मौका नहीं गंवाते। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा मंच (इंटरनेशनल एनर्जी फ़ोरम,...
More »एंजाइम प्लास्टिक को नष्ट कर प्रदूषण से दिलाएगा निजात
वैज्ञानिकों ने पर्यावरण प्रदूषण के लिए जिम्मेदार एक बड़ी समस्या के निदान में कामयाबी पाई है। उनका दावा है कि, उन्होंने एक ऐसा एंजाइम बनाया है जो आम तौर पर प्रदूषण पैदा करने वाले प्लास्टिकों को खत्म कर सकता है। इस एंजाइम के विकास से पॉलीथीन टेरिफ्थेलैट (पीईटी ) से बने करोड़ों टन बोतलों का पुनर्चक्रण मुमकिन हो सकता है, जो अपने इस्तेमाल के बाद सैकड़ों साल तक पर्यावरण में...
More »कैसे आएंगे कठघरे में साइबर अपराधी-- जाहिद खान
‘डिजिटल इंडिया' के सरकारी नारों के पीछे हमारी साइबर सुरक्षा कितनी पुख्ता और अभेद्य है, इस बात की पोल एक बार फिर सरकारी वेबसाइटों में सेंध लगने और इन वेबसाइटों के बंद होने की घटना ने खोल दी है। पिछले दिनों अचानक रक्षा मंत्रालय की वेबसाइट के होम पेज पर चीनी शब्द दिखाई देने लगा। इसके कुछ देर बाद ही गृह मंत्रालय, चुनाव आयोग और श्रम मंत्रालय सहित करीब दस...
More »चंपारण से निकला रास्ता- राजू पांडेय
चंपारण सत्याग्रह नील की खेती करने वाले किसानों के अधिकारों के लिए संगठित संघर्ष के रूप में विख्यात है। इसके एक सदी बाद भी देश का किसान बदहाल है। 2010-11 के आंकड़ों के अनुसार, देश के 67.04 प्रतिशत किसान परिवार सीमांत हैं जबकि 17.93 प्रतिशत कृषक परिवार लघु की श्रेणी में आते हैं। सरकार ने संसद को राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण द्वारा जुलाई 2012 से जून 2013 के संदर्भ में संकलित...
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