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बेरहम जमाने में घरेलू हिंसा का दाग - मृणाल पांडे

बीते हफ्ते जब मानसून सत्र में संसद गोकशी, कथित गोरक्षकों द्वारा मचाए गए तांडव और सर्वोच्च न्यायालय भारतीय नागरिकों के निजता अधिकार की परिधि पर बहस में मुब्तिला थे, तभी एक सफल और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर असमिया मॉडल द्वारा पति के हाथों कथित रूप से प्रताड़ित हो आत्महत्या करने की लोमहर्षक रपट भी सुर्खियों में थी। बॉलीवुड की एक युवा अभिनेत्री जिया खान की कथित आत्महत्या भी अब तक...

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हमें और मंदसौर नहीं चाहिए-- शशिशेखर

दसौर की घटना पर आंसू बहाने वाले दिल कड़ा कर लें, क्योंकि असंतोष की चिनगारियां देश के कई हिस्सों में छिटक रही हैं। कारण? गांवों और कस्बों में रहने वाली देश की बड़ी आबादी के लिए ताकतवर भारतीय राष्ट्र-राज्य अब भी दूर की कौड़ी है। क्या हमें इस बात पर शर्म नहीं आनी चाहिए कि कृषि-प्रधान कहलाने वाले देश की कोई कारगर ‘राष्ट्रीय कृषि नीति' नहीं है? 1947 से अब...

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ढाई साल का ऐतिहासिक सफरनामा-- एम वेंकैया नायडू

यूपीए के एक दशक के दागदार शासन के बाद हमने शुरुआत की थी, तब से लेकर आज दुनिया की सबसे तेजी से विकास कर रही अर्थव्यवस्थाओं में एक गिने जाने तक, यानी एनडीए-दो के ढाई साल के शासनकाल में भारत की तरक्की की कहानी कई परिवर्तनकारी कदमों के सहारे आगे बढ़ी है। इन कदमों ने न सिर्फ देश की छवि दुनिया भर में निखारी, बल्कि देश के नागरिकों के जीवन-स्तर...

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जीडीपी बनाम भूख सूचकांक-- धर्मेन्द्रपाल सिंह

ताजा विश्व भूख सूचकांक या ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआइ) के अनुसार भारत की स्थिति अपने पड़ोसी मुल्क नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और चीन से बदतर है। यह सूचकांक हर साल अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आइएफपीआरआइ) जारी करता है, जिससे दुनिया के विभिन्न देशों में भूख और कुपोषण की स्थिति का अंदाजा लगता है। आज केवल इक्कीस देशों में हालात हमसे बुरे हैं। विकासशील देशों की बात जाने दें, हमारे देश...

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काहे रे नदिया तू बौरानी!-- अनिल रघुराज

पानी गले तक आ जाये, तो औरों का भरोसा छोड़ कर खुद ही सोचना और खोजना पड़ता है कि बचने का क्या रास्ता है. दो साल के सूखे के बाद सामान्य माॅनसून ने पूरब से लेकर उत्तर भारत के तमाम इलाकों में यही हालत कर दी है. शहरों, कस्बों व गांवों में लोग घरों से निकल कर सड़कों पर आ गये हैं. नदियां बावली हो गयी हैं. कई जगह तो...

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